नई दिल्ली,
कई बार वायरस के नाम को लेकर हमारी जिज्ञासा अधूरी ही रह जाती है, लेकिन वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह किसी भी वायरस का नाम तभी देता है, जबकि उससे संबंधित सभी साक्ष्य वैज्ञानिकों के पास मौजूद होते हैं। चीन के वुहान शहर में क्रोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया, लैबोरेटरी जांच इलेक्ट्रो माइक्रोस्कोप जांच में वायरस का आकार क्रोन या मुकुट और सोलर क्रोनो जैसा गया, जिसकी वजह से वायरस का नाम क्रोरोना रखा गया। रोगप्रतिरोधक क्षमता कम होने या फिर सीओपीडी श्वसंन संबंधी तकलीफ वाले लोगों पर हमला जल्दी हो सकता है, क्योंकि इनकी रोगों से लड़ने की क्षमता काफी कम होती है। यह एक जोनोटक यानि पक्षियों से मनुष्यों में होने वाला संक्रमण है, जोनोटिक संक्रमण प्रत्येक पांच से दस साल के अंतराल में मनुष्य को प्रभावित करता है।
कंफेडेरेशन ऑफ मेडिकल एसोसिएशन और एशिया ओसियान और आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि इससे पहले एसएआरएस सीआवी वायरस का असर देखा गया, फिर एमईआरएम सीओवी और अब क्रोरोनो वायरस का असर देखा गया गया है। क्रोनोलॉजी बताती है कि प्रत्येक दस साल के अंतराल में पक्षियों से मनुष्यों को ऐसे संक्रमण का खतरा रहता है। हालांकि इसे गंभीर संक्रमण बताया गया है जिसमें मोरटिलेटी दर केवल तीन प्रतिशत ही है। संक्रमण का वायसस बैट या चमगागड़ों की ड्रापलेट या शरीर के द्रव्यों से हवा के जरिए सांस से माध्यम से शरीर तक पहुंचता है, मानव शरीर की श्वांस नली एपीथिलियस जगह इसके लिए सटीक मानी गई जहां वायरस ग्रो करता है, इसलिए श्वसन संबंधी संक्रमण को लक्षणों में प्राथमिकता से देखा जाता है। अपर रेस्पेरेटरी संक्रमण से आगे बढ़ने पर संक्रमित मनुष्य से अन्य मनुष्य को भी वायरस के संक्रमण का खतरा रहता है। समुद्री खाद्य पद्धार्थो से संक्रमण के बढ़ने का खतरा बढ़ता है। चीन में समुद्री सांप को इसकी प्रमुख वजह पाया गया। जुखाम, अस्थमा या सांस संबंधी बीमारी वाले लोगों को इस समय समुद्री खाना खाने से बचना चाहिए, कंफेडेरेशन को प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखे पत्र के बाद मंत्रायल से संक्रमण संबंधी हेल्पलाइन नंबर जारी किया है।