नई दिल्ली: इंडोर पल्यूशन यानि घरों के अंदर प्रदूषण लेवल बच्चों को बीमार कर रहा है। बच्चों में यह प्रदूषण सहूलियत के लिए लगाया गया आधुनिक सामान ही बीमारी की वजह बन रहा है। रेडिएशन युक्त चीजें, एयरकंडीशन और इलेक्ट्रानिक सामान जिंदगी को आसान तो बना रहे हैं, लेकिन इसके साथ यह घर के अंदर ऑक्सीजन का स्तर भी कम कर रहा है। एक एनजीओ ने इन उपकरणों का बच्चों की सेहत पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है।
सांस (स्कूल अस्थमा अवेयरनेस नेशनल स्टडी) फाउंडेशन ने ब्रेटर ब्रीदिंग क्लब ऑफ इंडिया के तहत दिल्ली एनसीआर के 1500 बच्चों पर यह स्टडी की है। इस स्टडी में बच्चों में बाहरी प्रदूषण यानि कि घर से बाहर निकलने से कहीं ज्यादा घर के अंदर पाए जाने वाले प्रदूषण के शिकार पाए गए। अध्ययन के प्रमुख डॉ. पार्थो बोस ने बताया कि दिल्ली एनसीआर के बच्चों की सांस संबंधी सेहत का वर्ष 2002 से वर्ष 2006 तक अध्ययन किया गया।
उन्होंने कहा कि ये बच्चे घर के अंदर छह से आठ घंटे समय बिताने के बाद दो घंटे पार्क में और पांच घंटे का समय स्कूल में रहते हैं। घर में एसी और कंप्यूटर सहित कारपेट और कालीन का इस्तेमाल करने पर इनमें से 69 प्रतिशत बच्चों को सांस संबंधी एलर्जी देखी गई। जबकि 15 प्रतिशत बच्चे सीओपीडी यानि क्रानिक ऑब्सट्रक्टिव एंड पल्मोनरी डिजीज के शिकार पाए गए। इसके अलावा दो से तीन प्रतिशत बच्चों के घरेलू जानवर जैसे कुत्ते और बिल्ली की वजह से भी सांस की परेशानी देखी गई।
डॉ. बोस ने बताया कि कम उम्र में शुरू हुई सांस संबंधी एलर्जी 12 से 18 साल के बीच में सांस की परेशानी में बदल जाती है। घर में पर्याप्त वेंटिलेशन न होने भी परेशानी का बड़ा कारण पाया गया।
क्या हैं परेशानिया
– एसी में ऑक्सीजन का स्तर कम कर सांस लेने में परेशानी बढ़ाते हैं
– रेडिएशन युक्त इलेक्ट्रानिक उपकरण घर के अंदर प्रदूषण बढ़ाते हैं
– घर में पर्याप्त वेंटिलेशन न होने के कारण एक से दूसरे में संक्रमण बढ़ता है
– कालीन और कारपेट की सही सफाई न होने पर भी धूल के करण एलर्जी पैदा करते हैं।
– पालतू कुत्ते या बिल्ली भी संक्रमण की वजह हो सकते हैं।
– पैसिव स्मोकिंग भी अहम वजह, पिता के सिगरेट पीने का असर पड़ता है बच्चों पर