नई दिल्ली,
देश में मुश्किल से आठ से दस स्किन बैंक हैं जबकि यहां जलने के कारण हर साल करीब सात से आठ लाख मरीज अस्पतालों में दाखिल होते हैं। यहां स्किन बैंक को पर्याप्त तरीके से उपयोग करने का ढांचा भी उपलब्ध नहीं है इसी कारण स्किन बैंकों का समुचित लाभ मरीजों को नहीं मिल पाता है। ये कहना है सर गंगाराम अस्पताल के डॉ. राजीव आहूजा का। बुधवार को डॉ. आहूजा ने कहा कि त्वचा दान यानी स्किन डोनेशन को लेकर देश में अभी काफी अनभिज्ञता है जिसका सीधा असर एसिड हमले के पीडि़तों और जलने से जख्मी हुए मरीजों पर पड़ता है।
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर बर्न इंजुरीज (आईएसबीआई) के पूर्वी दिल्ली के होटल लीला में आयोजित 19वें सम्मेलन में त्वचा दान के प्रति जागरुकता के अभाव पर व्यापक चर्चा हुई। इस दौरान आईएसबीआई की महानिदेशक डॉ विनीता पुरी ने कहा कि त्वचा का दान भी अंग दान या नेत्र दान जितना ही महत्वपूर्ण है लेकिन दुर्भाग्य से इसके प्रति भारत में जागरुकता की कमी है।
जलने से जख्मी हुए मरीजों की मदद के लिए काम करने वाली एसिड हमले की पीडि़ता और अतिजीवन फांउडेशन की संस्थापिका एवं सचिव प्रज्ञा प्रसून ने बताया कि उसके संगठन के प्रयासों से बेंगलुरु,चेन्नई और मुम्बई जैसे महानगरों में करीब 50 त्वचा दाताओं ने अपना पंजीकरण कराया है। प्रज्ञा ने कहा कि उनके संगठन ने करीब 2,000 एसिड हमला पडितों और जलने से जख्मी हुए मरीजों की मदद की है। उन्होंने बताया कि इस दिशा में अभी काफी प्रयास की जरुरत है। सरकार और गैर सरकारी संगठनों को साथ मिलकर काम करना होगा तभी ऐसे पीडि़तों का पुनर्वास संभव होगा।
डॉ आहूजा ने कहा कि जलने से जख्मी हुए मरीजों के इलाज का यहां पर्याप्त ढांचा नहीं है। प्रशिक्षित डॉक्टरों और नर्सों की कमी, पर्याप्त उपचार व्यवस्था की कमी और महंगे ईलाज के कारण स्थिति और गंभीर हो जाती है। जलने पर उपचार के लिए लोगों को दूर के चिकित्सा केंद्रों में जाना पड़ता है जिससे मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है। करीब 50 फीसदी मरीज जलने के छह घंटे बाद उपचार के लिए अस्पताल पहुंचते हैं। प्रशिक्षित नर्स की कमी के कारण जलने के मरीजों की देखभाल अधिकतर मरीजों के परिजन करते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
आईएसबीआई का कहना है कि बर्न इंजरी की रोकथाम को लेकर राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाने की जरूरत है। इसके अलावा जलने की घटनाओं का केंद्रीय रूप से आंकड़ा जमा करना चाहिए।