जानलेवा पॉल्यूशन

पॉल्यूशन के बढ़ते लेवल से न केवल इंटरनल ऑर्गन पर असर पड़ता है, बल्कि आउटर पार्ट्स भी प्रभावित होता है। इन दिनों राजधानी का पॉल्यूशन का लेवल काफी बढ़ गया है और यह सांस के जरिए बॉडी के अंदर पहुंच रहा है। इसकी वजह से लंग्स इंफेक्शन, अस्थमा, रेस्पेरेटरी प्रॉब्लम, लोअर ट्रैक इंफेक्शन, हार्ट डिजीज, ब्रेन स्ट्रोक तो होते ही हैं, आंखों में जलन, स्किन एलर्जी, इम्यून सिस्टम में गड़बड़ी, बाल झड़ने की समस्या भी हो सकती है। भले ही पॉल्यूशन का सीधा संबंध इन बीमारियों से है या नहीं, इस पर स्टडी की कमी है, लेकिन क्लीनिकल स्टडी के अनुसार एक साथ कई बीमारियों की वजह है पॉल्यूशन। डॉक्टरों का मानना है कि जिस प्रकार राजधानी में पॉल्यूशन की हालत है, यह हर किसी के लिए खतरनाक है। इसकी वजह से कई अनचाही बीमारियां हो रही हैं।

रेस्पेरेटरी ट्रैक्ट इनफेक्शन:
दिल्ली में पॉल्यूशन लेवल काफी ऊपर है और यह सांस के जरिए बॉडी के अंदर तक पहुंच रहा है। अगर पॉल्यूटेंट्स छोटे हैं तो वे नाक के जरिए रेस्पेरेटरी ट्रैक्ट तक पहुंच जाते हैं और सांस लेने में परेशानी पैदा करते हैं। ये पार्टिकल्स गले तक पहुंच जाएं, तो सांस लेने में दिक्कत आ सकती है और खांसी हो सकती है। यह पूरे ट्रैक को इफेक्ट करता है, जिससे ब्रोंकाइटिस का अटैक पड़ सकता है।

अस्थमा अटैक:
नाक हमारा फिल्टर है जो हवा में मौजूद पॉल्यूटेंट्स को बाहर ही रोक देता है, ताकि यह लंग्स तक न पहुंचे। लेकिन अभी पॉल्यूशन का लेवल इतना ज्यादा है कि नाक बंद हो जाती है। इस वजह से लोग खुले मुंह से सांस लेने लगते हैं। इससे एयर का फिल्ट्रेशन नहीं हो पाता। जहां केवल जुकाम होना था वहां ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, इनफेक्शन की बीमारी हो जाती है। लंग्स इन्फेक्शन अगर वातावरण के एक वर्गमीटर एरिया में पीएम पार्टिकल्स 10 माइक्रोग्राम तक बढ़ जाए तो लंग इंफेक्शन का खतरा 15-20 पर्सेंट तक बढ़ जाता है। जब पार्टिकल्स का साइज 2.5 पीपीएम से कम होता है तो वह सीधे रेस्पेरेटरी सिस्टम में पहुंच जाता है।

ब्लड कैंसर:
का खतरा पॉल्यूशन में बेन्जीन की वजह से कैंसर के साथ-साथ ए प्लास्टिक एनीमिया यानी ब्लड कैंसर का खतरा रहता है। बेन्जीन ब्लड सेल्स पर असर डालती है और इसकी वजह से ब्लड कैंसर होने का खतरा रहता है। दिल्ली की हवा में घुले सल्फर, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, बेन्जीन, बेन्जोफाइरीन और अन्य पार्टिकुलेट मैटर्स की वजह से यहां लंग कैंसर का खतरा बढ़ गया है।

खांसी और गले में सूजन:
ये मैटर्स सांस के जरिए लंग्स में पहुंचकर उसे डैमेज कर रहे हैं। खांसी और गले में सूजन पॉल्यूशन के कण की वजह से फॉरिंग्स, लॉरिंग्स, ब्रोंकस लेफ्ट और राइट, ट्रैकिया, लंग्स में जब सूजन होती है तो इससे खांसी की शुरुआत होती है। इसमें एक सेंसरी नर्व होती है, जिसमें मिकोजा लेयर होती है। अगर इसमें किसी वजह से सूजन होती है तो खांसी होने लगती है। नाक, कान और गले में इन्फेक्शन छोटे पार्टिकल्स सांस की नली में पहुंच जाएं, तो इससे नाक लाल हो जाती है और इसमें सूजन आ जाती है। इरिटेशन होने लगती है। इससे गले में खराश होने लगता है और बाद में जुकाम और अन्य परेशानी होने लगती है।

आई एलर्जी: पॉल्यूशन से आंख में खुजली और जलन होने लगती है। कई बार पॉल्यूशन के कारण आई इंफेक्शन एक से दूसरे व्यक्ति में भी फैलने लगता है। आंखों में तेज खुजली होती है, लगातार पानी आता है, आंखों में दर्द रहता है, आंखों में और उसके आस-पास सूजन होता है और वे लाल हो जाती हैं। बाल और स्किन प्रॉब्लम्स पॉल्यूशन से बाल भी गिरने लगते हैं। हवा में मौजूद कई पार्टिकल्स बालों को कमजोर बनाते हैं, इसलिए दिल्लीवालों में बाल झड़ने की समस्या आम है। पॉल्यूशन के कारण स्किन की बीमारी और एलर्जी के चांस भी ज्यादा रहते हैं। इम्यून सिस्टम डॉक्टरों का मानना है कि पॉल्यूशन की वजह से बॉडी के इम्यून सिस्टम तक पर भी असर पड़ता है। इसकी वजह इंसान बीमार पड़ता है, जल्दी ठीक नहीं होता है, दवा का असर कम होता है और इनफेक्शन की संभावना ज्यादा हो जाती है।

ब्रेन स्ट्रोक: हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड ज्यादा है, तो ब्रेन पर इफेक्ट पड़ता है। बीपी के मरीज को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है। हाई बीपी ये पार्टिकल्स ब्लड में पहुंच जाएं, तो ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। सर्दी में नसें सिकुड़ जाती हैं और बीपी हाई रहता है। आप सुबह वॉकिंग या रनिंग करते हैं, तो बीपी बढ़ने के चांस ज्यादा रहते हैं।

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