नई दिल्ली, भाषा: उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि पटना की सडकों पर दुष्कर्म का शिकार हुई 26 सप्ताह की गर्भवती एचआईवी ग्रस्त महिला गर्भपात नहीं करा सकती क्योंकि एक मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार यह जच्चा बच्चा के लिए जोखिम भरा होगा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने कहा कि बलात्कार पीडिता होने के नाते 35 वर्षीय महिला को सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार मुआवजा मिलना चाहिए। पीठ ने बिहार सरकार को निर्देश दिया कि महिला को चार सप्ताह के भीतर तीन लाख रपये प्रदान किये जाएं। शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार से महिला को पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (आईजीआईएमएस) में एम्स, दिल्ली के डॉक्टरों द्वारा दिये गये उपचार चार्ट के अनुरुप सभी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करने को भी कहा। पीठ ने एम्स के मेडिकल बोर्ड की एक रिपोर्ट का उल्लेख किया जिसने महिला का परीक्षण किया था। पीठ ने कहा कि डॉक्टरों की राय है कि इस स्तर पर गर्भपात की प्रक्रिया महिला और बच्चे दोनों के लिए जोखिम भरी होगी। अदालत में रखी गयी रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि महिला को एआरटी कराने की सलाह दी गयी है ताकि बच्चे को एचआईवी संक्रमण का खतरा कम हो।