नई दिल्ली, पुरेन्द्र कुमार
दिल्ली के अधिकांश अस्पताल खाली पड़े हैं, बावजूद इसके वहां मरीज नहीं पहुंच रहे हैं। जिसकी वजह से बेड खाली न होने की शिकायत हर रोज मिल रही है। दिल्ली सरकार ने छह अस्पतालों में 4,360 बेड कोरोना के लिए आरक्षित कर रखे हैं। इसमें लोकनायक में 2000, जीटीबी में 1500, राजीव गांधी में 500, दीप चंद बंधु में 176, राजा हरीश चंद्र में 168, जगप्रवेश चंद्र अस्पताल में 16 शामिल हैं।
दिल्ली कोरोना ऐप के मुताबिक बुधवार को लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल एलएनजेपी में 61 प्रतिशत बेड खाली थे। जीटीबी में 89 प्रतिशत, राजीव गांधी में 49 प्रतिशत, दीप चंद बंधु में 53 प्रतिशत, राजा हरीश चंद्र में 87 प्रतिशत और जग प्रवेश में 100 प्रतिशत बेड खाली थे। सीधे तौर पर माना जा रहा है कि कुछ अस्पतालों में इलाज के लिए ज्यादा पहुंच रहे हैं और कुछ पर बिल्कुल भी नहीं।
केन्द्र सरकार के अस्पताल की बात करें तो वहां 1,470 बेड हैं। इसमें से 84 फीसदी भर चुके हैं। लेडी हार्डिंग में कोई बेड खाली नहीं है। आरएमएल, सफदरजंग, एम्स दिल्ली और एम्स झज्जर में क्रमश: 2, 6, 63 और 164 बेड खाली हैं।
वहीं प्राइवेट अस्पतालों में कुल 3,349 बेड हैं। इसमें अभी 29 प्रतिशत भर चुके हैं। लोगों में प्राइवेट अस्पतालों की डिमांड ज्यादा होने की वजह से दिल्ली सरकार ने उनसे भी 2,000 बेड और तैयार रखने को कहा है।
कमरा, टॉइलट शेयर नहीं करना चाहते लोग …
हेल्थ एक्सपर्ट मानते हैं कि लोग सरकारी की जगह प्राइवेट में भर्ती होना ठीक मानते हैं। इसकी वजह सरकारी हॉस्पिटल को लेकर बनी धारणा ही जिम्मेदार है। वजह यह भी है कि प्राइवेट हॉस्पिटल की तरह सरकारी में सिंगल रूम नहीं होते। लोग दूसरों के साथ रहना या टॉइलेट शेयर भी नहीं करना चाहते। सरकारी हॉस्पिटल में एक हॉल में करीब 10 मरीजों को तो रखा ही जाता है। पब्लिक हेल्थ एक्टविस्ट अशोक अग्रवाल कहते हैं कि तमाम सुविधाओं के बावजूद सरकारी हॉस्पिटलों की छवि नहीं सुधरी है जिसकी वजह से ऐसा हो रहा है।