नई दिल्ली
जन्म के बाद बच्चों के पैरों के बढ़ते आकार भी नजर डालनी जरूरी है। सामान्य आकार की जगह यदि पंजे नुमा आकार में पैर बढ़ रहा है तो इसकी कई वजहें हो सकती हैं जिसे बाद में ठीक करना मुश्किल होता है। दस साल की अन्नया कुछ इस तरह की परेशानी की शिकार थी, जन्म के बाद उसके पैरों की अंगुलियां पंजे के आकार में बढ़ने लगी, जिसकी वजह से उसे चलने में भी तकलीफ हो रही थी। अन्नया की कम उम्र थी इसलिए उसका इलाज बिना सर्जरी के हो गया, जबकि अधिक उम्र में जब मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं, ऐसी अवस्था में क्लां शू का इलाज केवल सर्जरी ही रह जाता है।
मुंबई के नानावती अस्पताल में बच्ची का इलाज किया गया। अस्पताल के आर्थोपेडिक सर्जन और पोडिआरिस्ट डॉ. प्रदीप मुनोट ने बताया कि क्लां फुट या पछी के पंजे जैसे पैरों हो हालांकि सामान्य विकृति माना गया है, ज्यादातर लोग इस विकृति को समस्या भी नहीं मानते हैं, लेकिन इस तरह के पैर रिह्यूमेटॉयड, डायबिटिज या फिर मांसपेशियों की कमजोरी की वजह से हो सकते हैं। क्लां फुट मुख्य रूप से पैरों की अंगूलियों के जोड़ों को प्रभावित करता है, जो सख्त और लचीले दो तरह के होते हैं, क्लां फुट के लचीले जोड़ को मैनुअली ठीक किया जा सकता है, लेकिन सख्त जोड़ के लिए सर्जरी करनी पड़ती है। सख्त जोड़ में अंगूलियों का घुमाव भी सख्त होता है और इस अवस्था में जोड़ में दर्द बढ़ जाता है।
कब बढ़ती है परेशानी
डॉ. प्रदीप ने बताया कि इलाज के लिए नानावती अस्पताल पहुंची अनन्या की यही हालत थी, पंजे में दर्द की वजह से उसका चलना भी दूभर हो गया था, लगातार अंगूलियां पर दवाब बढ़ने से पंजे की अंगूलियों के जोड़ जहां पर बॉल ऑफ टो होती है वहां सेल्यूलस या फिर कार्न बढ़ने लगता है। कॉर्न या सेल्यूलस त्वचा की वह उपरी सतह होती है जो क्लां फुट में लगातार जूते पहनने से बढ़ जाती है, जूतों के रगड़ खाने से उभरी यह त्वचा चलने में तकलीफ पैदा करती है। जूतों के जरिए पंजों पर बढ़ते इस दवाब को यदि समय रहते ठीक नहीं किया जाता तो यहीं मांसपेशियां सख्त हो जाती है और क्लां शू को ठीक करने के लिए सर्जरी करनी पड़ती है, पैरों की विकृत और जुड़ी हुईं अंगूलियां संक्रमण को भी बढ़ा सकती है, कई बार सख्त जोड़ होने पर पैरों में हवा नहीं पहुंच पाती और आद्रता बढ़ जाती है। दोनों ही स्थिति में सही समय पर ध्यान न देने पर इलाज करना कठिन होता है।
भारत में बीस प्रतिशत को परेशानी
भारत में बीस प्रतिशत लोग क्लां फुट के शिकार हैं, जिन्हें परेशानी की पहचान तीस से चलीस साल की उम्र के बाद होती है, हालांकि यह भी तथ्य है कि अधिकांश मामलों में आजीवन लोग क्लां फुट का इलाज भी नहीं कराते, महिलाओं में हाई हील और नोंकदार जूतें पहनने की वजह से भी क्लां फुट की समस्या देखी जाती है, जिसका बाद में सर्जरी द्वारा ही इलाज किया जाता है।
रिह्युमेटायड आर्थराइटिस को भी विकृति की वजह माना गया है। जोड़ों को प्रभावित करने वाली इस आर्थराइटिस की एडवांस स्थिति में मरीज सामान्य चलने में भी अक्षम होता है। क्लां फुट की अन्य वजहों में डायबिटिज, स्ट्रोक, सेरेब्रल पैलसी, मांसपेशियों का कमजोर होना और जन्मजात विकृति आदि भी हैं, कुछ चिकित्सक हैमर शु को भी क्लां शु की श्रेणी में रखते हैं, जबकि यह उससे बिल्कुल विपरीत विकृति होती है जिसके लिए अन्य मांसपेशियों को जिम्मेदार माना गया है।
कब मिले चिकित्सक से
यदि पैरों की यह विकृति जन्मजात नहीं है और बाद में विकृति विकसित हुई है तो पैरों में आए बदलाव को तुरंत चिकित्सक को दिखाएं, अंगूलियों के जोड़ पर सेल्यूलायड बढ़ने से पहले जोड़ लचीले होत हैं, जिसका बिना सर्जरी के इलाज किया जा सकता है। लेकिन इस अवस्था को नजरअंदाज करने पर बढ़ा हुआ सेल्यूलायड जूतों की रकड़ से सख्त हो जाता है, इस समय अंगूलियों को घुमाना मुश्किल होता है और सर्जरी करके ही पंजे की विकृति को ठीक किया जाता है।