नई दिल्ली: बॉथरूम समझकर किचन में चला जाना, पत्नी को नहीं पहचाना, रास्ता भूल जाना ये ऐसे लक्षण हैं जो मरीज में डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण को बताता है। लेकिन, चिंता की बात यह है कि आम लोगों को यह नहीं पता कि भूलना एक बीमारी है। हाल ही में फोर्टिस वसंत कुंज में हुए एक सर्वे में पता चला है 90 पर्सेंट युवा भूलने की आदत को बीमारी नहीं मानते हैं। डॉक्टर का कहना है कि यह तब है जब इस बीमारी पर होने वाला खर्च कैंसर से भी ज्यादा होता है।
: 85 पर्सेंट लोग अल्जाइमर को एक बीमारी के तौर पर नहीं जानते हैं
: 90 पर्सेट को यह नहीं मालूम है कि बार बार स्ट्रोक से याददास्त को नुकसान हो सकता है
: 97 पर्सेंट ने कहा कि डिमेंशिया के कारण का पता नहीं
: 91 पर्सेंट नहीं जानते हैं कि डिमेंशया दोबारा हो सकती है।
फोर्टिस की न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर माधुरी बेहारी की अगुवाई में दिसंबर 2016 से जनवरी 2017 के बीच 15 से 40 साल के उम्र के लोगों से सवाल जवाब किया, जिससे यह चौंकाने वाले फैक्ट्स सामने आया है। डॉक्टर माधुरी ने कहा कि भारत में हर मिनट किसी को डिमेंशिया होता है, और इसमें से किसी को भी इसका इलाज नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि डिमेंशिया के इलाज पर होने वाला सीधा खर्च डायबिटीज, हाइपरटेंशन और कैंसर से भी अधिक होता है। डॉक्टर ने कहा कि इस बीमारी की शुरुआत मामूली भूलने से होती है और एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि जहां एक व्यक्ति अपने करीबी लोगों को भी नहीं पहचानात। मरीज बोलना चाहता है लेकिन क्या बोलना है यह भूल जाता है, जानी पहचानी जगहों का रास्ता भूलना सामान्य बात है। 60 सा 70 साल की उम्र का कोई बुजुर्ग बाजार से अपने घर का रास्ता भूल जाता है या खुद को अजीब
स्थिति में पाता है।
डॉक्टर ने कहा कि लक्षण धीरे धीरे दिखाई देता है और धीरे धीरे यह बढ़ता है। ज्यादातर लोगों में इसकी शुरुआत याद रखने में गड़बड़ी और खासतौर पर हाल ही में घटनाओं को भूलने से हो सकती है। जैसे उन्होंने क्या खाया था और वे कहां गए थे। कुछ मरीज शब्दों को याद नहीं कर पाते हैं जो वो बोलना चाहते हैं या फिर उन्हें यह याद नहीं रहता है कि वे किस संदर्भ में बात
करना चाहते हैं या फिर शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पाते हैं, कुछ मरीज यह नहीं समझ पाते हैं कि क्या कहना है। कुछ अन्य मरीजों को घर के अंदर या बाहर जाने का राष्ता याद नहीं रता है और वे गुम हो जाते हैं। वे टॉयलेट समझकर रसोई घर में चले जाते हैं, बगैर समझे यूरिन कर देते हैं, उन्हें समय का पता नहीं चलता है, वो यह सोच कर जल्दी उठ जाते हैं कि सबुह हो गई
है और उठ कर नहा लेते हैं। उन्हें पता नहीं होता है कि कपड़े कैसे पहनना चाहिए और अपने रिश्तेदरों को भी नहीं पहचान पते हैं। उनके लिए वक्त ठहर जाता है। डॉक्टर ने कहा कि जब बीमारी की शुरूआत होती है तो वे सोचते हैं कि वही है जो वो थे, इसलिए वो यह सोच सकते हैं कि सिर्फ 40 साल के हैं और उनकी पत्नी जिनकी उम्र बढ़ चुकी है उन्हें मरीज अजनबी समझने लगता है।