मां का दूध नहीं फटकने देता तनाव को करीब

Happy young mother with baby boy at home

मां का दूध नवजात के लिए जीवन रक्षक ही नहीं जीवनदायक भी है। जन्म के तुरंत बाद एक घंटे के भीतर दिया गया गाढ़ा पीला दूध बच्चों को डायरिया व निमोनिया के खतरे को तो कम करता ही है, साथ ही कोलेस्टम (मां के दूध में उपस्थित हार्मोन) में मौजूद सेल्स शिशु को भविष्य में होने वाली बीमारियां जैसे मधुमेह, मोटापा, तनाव व त्वचा संबंधी संक्रमण से सुरक्षित रखता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पीडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख डॉ. विनोद पॉल ने बताया कि मां दूध बीमारियों से लड़ने के लिए ही बड़े होने पर चिंता व तनाव से मुकाबला करने की भी क्षमता देता है। कोलेस्टम के उपस्थित इम्यूनोलॉजिकल तत्व शिशु के दिल व दिमाग को मजबूत करते है। जन्म के बाद से छह महीने तक शिशु को केवल मां का दूध ही देना चाहिए, स्तनपान को लेकर बढ़ी जागरुकता के बाद भी 45 प्रतिशत महिलाएं भी छह महीने तक लगातार स्तनपान नहीं करा रही है, जबकि आंकड़े कहते हैं कि अकेले भारत में स्तनपान से हर साल एक लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है। जबकि जन्म के तुरंत बाद निमोनिया से मरने वाले ढाई लाख बच्चो को भी स्तनपान से बचाया जा सकता है। विश्व भर में हुए इस बात को प्रमाणित करते हैं कि जो बच्चे छह महीने तक लगातार मां का दूध पीते हैं वह बीमारियां के साथ ही मानसिक स्तर पर भी अधिक मजबूत होते हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रमेश अग्रवाल कहते हैं कि स्तनपान को लेकर 60 प्रतिशत लोग अब भी भ्रम में जीते हैं। विशेष परिस्थितियों में केवल एचआईवी पीड़ित महिला स्तनपान नहीं करा सकती, जबकि मां का रक्तचाप अधिक होने व मधुमेह होने पर भी वह स्तनपान करा सकती है। जन्म के बाद शिशु को शहद चटाने या फिर चीनी खिलाने, ग्राइप वाटर आदि टोटको से बच्चे की दूध पीने की क्षमता कम होती है।

बातें जो रखें ध्यान
-सामान्य व सी सेक्शन (सर्जरी) प्रसव में भी दें शिशु को पहला मां का दूध
-दिल की बीमारी लेकर पैदा हुए नीले व पीलिया के शिकार शिशु को भी कराएं स्तनपान
-जन्म के बाद छह महीने तक व छह महीने के बाद दो साल तक दिया जा सकता है मां का दूध
-छह महीने के बाद मां के दूध के साथ थोड़ी मात्रा में अन्य आहार भी दिए जा सकते हैं
-शिशु की जरुरत के आधार पर प्रत्येक तीन घंटे में स्तनपान कराएं
-कम दूध आने या शिशु के दूध न पीने के भ्रम से बचें, मां का आहार भी हो बेहतर

कामकाजी महिलाएं स्तनपान में पीछे
स्तनपान न कराने वाली 45 प्रतिशत महिलाओं में 34 फीसदी भागीदारी निजी क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की है। चाइल्ड केयर लीव का समय कम (तीन महीने) होने के कारण शिशु को छह महीने तक लगातार मां का दूध नहीं मिल पाता। डॉ. विनोद पॉल कहते हैं कि सरकारी क्षेत्र की तरह ही निजी क्षेत्रों में भी छह महीने की चाइल्ड केयर लीव होनी चाहिए, इसके साथ ही मां व शिशु के लिए संस्थानों में कडल्स (पालना) होना चाहिए।

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