नई दिल्ली: देश में पहली बार गर्भाशय (यूट्स) ट्रांसप्लांट की सफल सर्जरी करने में डॉक्टरों को सफलता मिली है। पुणे के डॉक्टरों ने एशिया में पहली बार 9 घंटे की मैराथन सर्जरी के बाद एक मां का गर्भाशय उसकी बेटी में ट्रांसप्लांट करने में सफलता प्राप्त की है। जिस मां के गर्भाशय से बेटी ने जन्म लिया था, अब उसी मां के गर्भाशय से बेटी का मां बनने का सपना पूरा होगा। 24 साल की महिला में 40 साल की मां का गर्भाशय 18 मई को पुणे के गैलेक्सी केयर लैप्रोस्कोपी इंस्टीट्यूट में किया गया। अब महिला भविष्य में मां बनन सकेगी।
क्रांतिकारी है गर्भाशय ट्रांसप्लांट: देश में पहली बार गर्भाशय प्रत्यारोपण को गायनी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने भी क्रांतिकारी स्टेप बताया है। गर्भाशय प्रत्यारोपण की सफलता से अब ऐसी महिलाएं भी मां बन सकेंगी जिनके पास गर्भाशय नहीं है। एशिया में पहली बार यह प्रत्यारोपण किया गया है और इसका फ्यूचर बहुत ही बेहतर होने वाला है। आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर अर्चना धवन बजाज ने कहा कि इससे सेरोगेसी की जरूरत खत्म हो जाएगी। महिलाएं अपने यूट्रस से मां बन सकेंगी और उनका मां बनने और इसे अनुभव करने का सपना पूरा हो पाएगा।
उन्होंने कहा कि स्वीडन में यह सफल रहा है इसलिए इसको लेकर हम डॉक्टर भी एक उम्मीद की नजर से देख रहे हैं। डॉक्टर बजाज ने बताया कि 1000 में से एक ऐसी महिलाएं होती हैं जिनका यूट्रस प्रीमेच्योरली निकालना पड़ता है, यंग एज में यूट्रस रीमूव करने से मां बनने का सपना खत्म हो जाता है। उन्होंने कहा कि एमआरकेएचएस सिंड्रोम(mayer rikitansky-kuster hauser syndrome) होता है, जिसमें महिला को जन्म के साथ टयूब होती है, ओवरी होता है लेकिन यूट्रस नहीं होता है, जिसकी वजह से वो मां नहीं बन पाती हैं। लेकिन यह केवल 0.2 पर्सेंट में ही होता है।
सनराइज हॉस्पिटल की लेप्रोस्कोपिक एंड गायनी सर्जन डॉक्टर निकिता त्रेहान ने कहा जयादातर कैंसर की वजह से यूट्रस निकालना होता है। उन्होंने कहा कि हाल ही में 24 साल की महिला में यूट्रस कैंसर की सर्जरी की है, अब वह कभी मां नहीं बन पाएगी, बच्चे के लिए उसे सेरोगेसी ही एक मात्र सहारा है। लेकिन अगर यूट्रस ट्रांसप्लांट सफल रहा तो ऐसी महिलाएं भी खुद मां बन सकेंगी। डॉक्टर बजाज ने कहा कि कई बार अबॉर्शन की वजह से इंजूरी हो जाती है, अगर अबॉर्शन करने वाला एक्सपर्ट नहीं है तो यूट्रस में इंजूरी हो जाती है जिसे बाद में निकालना पड़ता है।
इंडियन सोसायटी फॉर असिस्टेड रीप्रोडक्शन की सचिव डॉक्टर शिवानी गौड़ ने कहा कि हाई रिस्क सर्जरी है, जिसमें डोनर की पहली सर्जरी होगी, फिर रेसिपिएंट में सर्जरी कर यूट्रस इंप्लांट करना होगा। फिर आईवीएफ प्रोसीजर के जरिए ही बेबी होगा और इसमें भी सीजिरेयिन का सहारा लेना पड़ सकता है। लेकिन साथ में यह भी ध्यान रखना होगा कि बाद में कैंसर न हो। क्योंकि इसमें कैंसर रिस्क होता है। इसलिए रेसिपिएंट को इम्यूनोस्रपेशन की दवा हमेशा खानी पड़ती है, अगर इससे बचना है तो बेबी के बाद सर्जरी के जरिए यूट्रस निकालवा पड़ेगा, तभी यह पूरी तरह से सेफ है। लेकिन, इस यूट्रस ट्रांसप्लांट से महिलाओं की मां बनने का अपना सपना पूरा होगा।