रैट सिंड्रोम कर रहा है मासूमों को बीमार

ताली बजाते रहना, हाथ को जमीन पर तेजी से पटकना, शरीर के ऊपरी हिस्से को अधिक हिलाना आदि एक सामान्य बच्चे की खेलने की हरकतें हो सकती है। लेकिन यही हरकतें असामान्य रैट सिंड्रोम नामक बीमारी के भी लक्षण हो सकते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के जेनेटिक विभाग द्वारा में रैट सिंड्रोम पर बीते पांच साल से किए जाने अध्ययन में 150 ऐसे बच्चों की पहचान हुई है, जो दिखने में सामान्य बच्चों की तरह ही थे, जन्म के बाद छह से 18 महीने में यह लक्षण दिखाई देते हैं, जिनपर माता पिता ध्यान नहीं देते।
एम्स के जेनेटिक विभाग की डॉ. रजनी खजूरिया कहती हैं कि एक्स क्रोमोजोम के कारण लड़कियां रैट सिंड्रोम की अधिक शिकार होती हैं, जबकि यदि गर्भ में लड़कों का यदि गलत गुणसूत्र मिलते हैं तो वह जन्म के समय ही मर जाते हैं। लड़कियों को मां के गर्भ में यह सिंड्रोम मिलता है, जिसके लक्षण जन्म के बाद छह से 18 महीने के बीच में दिखाई देते हैं। बीमारी की पहचान न होने पर दो से तीन साल की उम्र मानसिक रूप से विकलांगता व शारीरिक विकास पर असर पड़ता है। डॉ. रजनी कहती हैं कि रैट सिंड्रोम के अब भी 80 फीसदी मामलों की पहचान नहीं हो पाई है। इसके लिए संस्थान में दो साल पहले इंडियन रैट सिंड्रोम फाउंडेशन बनाया गया है। डीएनए जांच के बाद फिजियोथेरेपी, दवाएं व ऑक्यूपेशन थेरेपी के जरिए विकलांगता को नियंत्रित किया जा सकता है, हालांकि बीमारी का सटीक इलाज अभी उपलब्ध नहीं है।

क्या है रैट सिंड्रोम
यह एक्स गुणसूत्र की बीमारी है, हमारा शरीर अनेक कोशिकाआें से मिलकर बना है, जिनके केन्द्र में नाभिक होता है, नाभिक में 46 गुणसूत्र पाए जाते हैं। गुणसूत्रों में धागेनुमा गुणसूत्र होते हैं। निषेचन के समय अगर डीएनए में न्यूकलियोटाइड ज्यादा, कम या फिर बदल जाते हैं तो यह जेनेटिक रैट सिंड्रोम की वजह बनता है। न्यूकलियोटाइड के म्यूटेशन की गड़बड़ी की वजह से एमईसीपीटू नामक जीन की कमी हो जाती है। यह जीन मस्तिष्क को क्रियाशील रखने के लिए जरूरी प्रोटीन का निर्माण करता है। एमईसीपीटू जीन एक्स जीन में होता है, लड़कियों में क्योंकि एक्स एक्स जीन होता है, इसलिए माना जाता है रैट सिंड्रोम की शिकार लड़कियों में दूसरा एक्स स्वस्थ नहीं होता। लड़कों में क्योंकि वाईएक्स होता है, इसलिए वह एक एक्स के खराब होने के कारण जन्म ही नहीं ले पाते।

क्यों पड़ा रैट सिंड्रोम नाम
वर्ष 1966 में एंड्रियास रैट नाम के चिकित्सक ने बीमारी की खोज की, जिसके बाद से ही इसका नाम रैट सिंड्रोम पड़ा। वर्ष 1999 में जापान और इंग्लैंड में 1000 से अधिक लड़कियों में रैट सिंड्रोम की पहचान की गई।

कद बढ़ाने वाली दवा हो सकती है कारगर
मैसाचुएट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने कद बढ़ाने के लिए (हार्मोन डेफिसिएेंसी) दी जाने वाली मिजर्स (250 एमजी) दवा को बीमारी के इलाज के शोध पर इस्तेमाल किया है। जिसके पहले चरण का शोध कार्य पूरा हो चुका है। दवा के शोध में बीमारी की शिकार भारतीय बच्ची को भी शामिल किया गया है। एम्स के जेनेटिक विभाग की प्रमुख डॉ. मधुलिका काबरा कहती हैं कि दवा के ट्रायल बूस्टर के तीन चरण के प्रयोग के बाद इसे 2014 तक भारतीय बच्चों को दिया जा सकता है।

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