लकवा के शिकार मरीज अब सीधे चल सकेंगे

नई दिल्ली,
सड़क दुर्घटना, हादसा या फिर ऐसी ही किसी वजह से रीढ़ की चोट के शिकार मरीज अब दोबारा अपने पैरों पर खड़े हो सकेंगें। दरअसल ऐसे मरीजों को अब तक व्हील चेयर या फिर फिजियोथेरेपी के सहारे ही रहना पड़ता था, मेरूदंड में चोट के कारण कई बार पेशाब व अन्य नियमित काम करने की संवेदना भी खत्म हो जाती थी। एपीड्यूरल स्टिम्युलेशन की मदद से ऐसे मरीजों के इलाज की उम्मीद जगी है। मार्ग दुर्घटना के शिकार हुए गुजरात निवासी अमिल ने डिवाइस के प्रयोग और उससे उनके जीवन में आए बदलाव को लेकर अपने अनुभव यहां एक प्रेस कांफ्रेंस में साक्षा किए।
अमिल ने बताया कि सड़क दुर्घटना में उनकी रीढ़ की डी 10 और 11 डोर्सल स्पाइन में गंभीर चोट आई। कमर के नीचले हिस्से में संवेदना खत्म होने की वजह अमिल नित्य काम भी नहीं कर पाते थे। एक मित्र की सलाह पर अमिल एपीड्युल स्टिम्युलेशन के प्रयोग को तैयार हुए, जो पेस मेकर की तरह दिखने वाला एक विशेष तरह का डिवाइस है। इससे रीढ़ की हड्डियों की क्षति को कुछ हद ठीक किया जा सकता है। इसे हड्डी के अंदर सर्जरी के माध्यम से फिक्स किया जाता है। इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रेन एंड स्पाइन के न्यूरोसर्जन डॉ. सचिन कंधरी ने बताया कि पैराइज्ड या लकवा के मरीज के लिए यह डिवाइस प्रयोग करने वाले आईबीएस देश का पहला अस्पताल है। इससे मरीज के जीवन को 80 प्रतिशत तक पहले जैसा किया जा सकता है। डॉ. सचिन ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में कई तरह की तंत्रिकाएं और ऊतक होते हैं, यह तंत्रिकाएं मस्तिष्क को संदेश भेजने का भी काम करती हैं, जिसकी वजह से व्यक्ति क्रियाएं करता है। इन तंत्रिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से मस्तिष्क को संदेश पहुंचना बंद हो जाता है और मरीज लकवे का शिकार हो जाता है। स्टिम्युलेशन इंम्पलांटक के जरिए कृत्रिम तरीके से यह संदेश मस्तिष्क को पहुंचाए जाते हैं। इंप्लांट की बैटरी एक बार चार्ज की जाती है, इससे मरीज को नियमित दिनचर्या में कोई परेशानी नहीं होती। हालांकि यह इंप्लांट अभी सभी तरह की मेरूदंड की चोट में काम नहीं आता बावजूद इसके रीढ़ की हड्डी के नीचले हिस्से में लगी चोट को ठीक किया जा सकता है। अमिल जैसे दो अन्य मरीज इंप्लांट की मदद से ठीक हुए जो पहले फिजियोथेरपी करा रहे थे।

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