नई दिल्ली,
कोरोना से खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री द्वारा रविवार को जनता कफ्र्यू के साथ ही पांच बजें घंटी, थाली या शंख बजाने का भी आहृवान किया है। कई तरह की आवाजों में अलग अलग तरह का वाइब्रेशन या तरंगें होती है, सुबह के समय चिड़ियों की आवाज सुनना हो, कोयल की कू कू या फिर मंदिर की घंटी, साउंड थेरेपी या ध्वनि तरंगों का हीलिंग में अहम योगदान होता है। एक सिरे से इसका विरोध भी हुआ, लेकिन यह लगातार करोड़ों लोगों द्वारा संध्याकाल में ध्वनि तरंगें उत्पन्न करने से एक साथ कई गुना सकारात्मक उर्जा का उत्सर्जन किया जा सकता है। ध्वनि थेरेपी को सदियों से हीलिंग और बिमारियों के इलाज में प्रयोग किया जाता रहा है।
ज्योतिसाचार्य अमरजीत सिंह कहते हैं कि 22 मार्च को जनता कफ्र्यू का जितना महत्व है, उससे कहीं ज्यादा शाम को पांच बजे घंटी बजाने की बात का भी महत्व है। शाम को पांच बजे चन्द्रमा एक नये रेवती नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है, इस समय ताली, थाली, घंटी या फिर शंख बजाने से संचयी कंपन पैदा होगा यह शरीर में रक्त परिसंचरण को प्रोत्साहित करेगा। यही कारण है कि पहाड़ों पर पुराने शक्ति मंदिरों में विशाल घंटा रखते हैं, जिससे पहाड़ियों में हुए कंपन से उत्पन्न ध्वनि तरंगें पूरे वातावरण में सकारात्मक उर्जा का संचार करती हैं। अमरजीत सिंह कहते हैं कि साउंड थेरेपी के जरिए शरीर में लाल रक्तकणिकाएं बढ़ाई जा सकती है, इससे उत्पन्न सकारात्मक उर्जा से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, ध्वनि तरंगों के माध्यम से शरीर के सातों चक्र को बैलेंस किया जा सकता है, जिसमें दो शरीर के बाहर होते हैं। अमरजीत कहते हैं कि हीलिंग के दौरान भी साउंड थेरेपी के माध्यम से शरीर के सामंजस्य को बनाया जाता है। इस लिहाज से सामूहिक रूप से उत्पन्न ध्वनि तरंगे और उसके माध्यम से उत्पन्न सकारात्मक उर्जा से निश्चित रूप से सफल परिणाम मिलेंगे।