बार-बार गर्भपात होने पर यदि अन्य सभी जांच सामान्य है तो एक बार लूपस की एसएलई जांच भी करा लेनी चाहिए। लूपस की शिकार 80 प्रतिशत महिलाओं की इसकी जानकारी नहीं होती है। गर्भ के 16 वें सप्ताह की कराई गई जांच के जरिए गर्भपात को रोका जा सकता है। विश्व लूपस दिवस के अवसर पर एम्स में मंगलवार को प्रेसवार्ता का आयोजन किया गया। लूपस 200 से अधिक ऑटोइम्यून (स्वत: प्रतिरक्षित प्रणाली) बीमारी में प्रमुख है जो अधिकतर महिलाओं को प्रभावित करती है।
एम्स के रिह्यूमेटोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने बताया कि लगातार बुखार रहना, चेहरे पर गाल व नाक पर लाल चकत्ते आना, बाल झड़ना आदि लूपस के लक्षण हो सकते है। पांच प्रतिशत गर्भपात के मामलों में लूपस को वजह बताया गया है। परिवार में यदि किसी को पहले से लूपस संक्रमण हो चुका है तो खून की एसएलए (सिस्टिमेटिक लूपस एरायथोमस) जांच करा लेनी चाहिए। 16वें सप्ताह में गर्भस्थ शिशु की एपीएलए जांच इस बात का पता लगा सकती है कि शिशु पर लूपस का कम असर है या अधिक। जांच के बाद कुछ दवाएं देकर लूपस के खतरे को कम किया जा सकता है। डा. उमा ने बताया कि ऑटोइम्यून बीमारी लूपस का अभी तक कोई स्थाई इलाज नही है, जबकि जांच होने के बाद मरीज को आजीवन स्टेरॉयड दवाएं लेनी पड़ती है। इसलिए यदि परिवार में पहले से किसी को जांच कराना बेहतर है। शरीर में मौजूद 200 से अधिक ऑटोइम्यून किडनी, लिवर या फिर आर्थराइटिस बीमारी की वजह बनते है। साधारण जनरल फिजिशियन को भी इसकी जानकारी नहीं होती इसलिए वह बीमारी बढ़ने के बाद विशेषज्ञ के पास भेजते है। एम्स के रिह्यूमेटोलॉजी विभाग की लैबारेटरी में 52 हजार ऑटोइम्यून संभावित बीमारियों के सैंपल जांच के लिए लाए गए, जबकि इस समय अकेले लूपस के 2000 मरीजों का इलाज किया चल रहा है, जिसमं बीमारी का असर किडनी और दिल तक पहुंच चुका है। मालूम हो सही समय पर लूपस की पहचान न होने पर प्रमुख अंग में पानी भरने लगता है, लूपस सभी अंगो को प्रभावित करती है।
एम्स में बढ़ेगी जांच की सुविधा
एम्स में अगले एक साल में ऑटोइम्यून बीमारियों की जांच का दायरा बढ़ाया जाएगा। जिसमें रोगप्रतिरक्षित बीमारी रिह्यूमेटॉयड के लिए आरएफ, एएनसीए सहित सीथ्री और सीफोर जांच शामिल है। इससे शरीर के रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करने की वजह से होने वाली किडनी, लिवर, दिल व फेफड़े की बीमारी का पता लगाया जाएगा। डॉ. उमा ने बताया कि शरीर में रोगों से बचने के लिए रक्षा कवच होता है, जब यही रक्षा कवच जब कमजोर हो जाता है तो ऑटोइम्यून बीमारियों की वजह बनता है।
लूपस के लक्षण
– बाल झड़ना, चिड़चिड़ा होना, हालांकि यह लक्षण थॉयरॉयड अनियंत्रित होने के भी होते हैं
– जोड़ो में सूजन, लगातार बुखार बने रहना और भूख कम लगता
– चेहरे पर नाक के आसपास लाल चकत्ते पड़ना या लाल होना
– मुंह में झाले या अल्सर होना
– हमेशा थकान का बने रहना या फिर जल्दी थक जाना आदि