नई दिल्ली,
बीते दो साल में देश कोविड काल के बुरे अनुभवों से गुजरा, यह समय स्वास्थ्य पत्रकारिता की परीक्षा का भी था। जिसके मिले जुले अनुभव सामने आएं। मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूमिका इस संदर्भ में सराहनीय नहीं रही, वहीं अपने विवेक के आधार पर गूगल पर स्वास्थ्य जानकारियां जुटाने से लेकर उनपर अमल करने तक लोगों की जागरूक भागी दारी अहम रही। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य पत्रकारिता में समाधानपरक पत्रकारिता की जरूरत है। भारतीय इलाज पद्धतियां कभी भी इलाज के दौरान अन्य बीमारियों के पनपने देने की पक्षधर नहीं रही हैं, बीते कुछ सालों में पारंपरिक इलाज पर लोगों का भरोसा बढ़ा है, लेकिन इस संदर्भ में मीडिया को अपना नजरिया बदलना होगा।
उपरोक्त बातें भारतीय जनसंचार संस्थान के उर्दू विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार ने स्वस्थ भारत ट्रस्ट द्वारा सातवें स्थापना दिवस समारोह पर वसुंधरा गाजियाबाद स्थित मेवाड़ इंस्टीट्यूट में आयोजित दो दिवसीय शिविर में कही। स्वस्थ भारत के निर्माण में मीडिया की भूमिका विषय वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. प्रमोद सैनी ने कहा कि हमें ऐसी स्वास्थ्य पत्रकारिता की जरूरत है जहां लोग बीमार पड़े ही नहीं, केवल दवा कंपनियों के मुखपत्र बनने से लोगों का भला नहीं होने वाला है। अखबारों पर लोग विश्वास करते हैं और यहां दी गई जानकारियों का पालन किया जाता है इसलिए लिखते हुए तथ्य आधारिक सकारात्मक रिपोर्ट को यदि प्रमुखता दी जाए तो लोगों को स्वस्थ्य जीवन शैली की ओर अग्रसर किया जा जा सकता है, प्रो. सैनी ने कहा कि प्रमाणित खबरों के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आईआईएमसी न्यूज ऑडिट प्रोफेसर की अधिक जरूरत है हम ऐसे प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं। प्रसार भारती के अध्यक्ष और दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष मुख्य वक्ता उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि आज समाज में जगत गुरू मीडिया की घोर कमी है, सभी समाचारों में एजेंडा निर्धारित किया जा रहा है ऐसे में मार्गदर्शक या जगत गुरू मीडिया कहीं खो गया है। अब अखबारों में लिखा हुआ ब्रहृम लेख नहीं माना जाता, हम इसका फर्क समझना होगा कि हमें प्रतिरोध में नहीं प्रतिपक्ष में खड़े रहना है। महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए उमेश चतुर्वेदी ने कहा कि गांधी जी के प्रकृति के संदर्भ में प्रयोगों को उनकी किताब रिटर्न टू नेचर से समझा जा सकता है दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद उन्होंने देश की प्राकृतिक संपदा को समझा और आजीवन देसी नुख्सों और प्राकृतिक उपचार पर अमल करते रहे। नेशनल यूनियर ऑफ जर्नजिस्ट के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार ने गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्राकृतिक उपचार के संदर्भ में दादी मां का बटुआ और शिल्पी दम्पति कांसेप्ट ग्रामीण इलाकों में अच्छा काम कर रहे हैं। जिनसे हमें सीख लेने की जरूरत है। मालूम हो कि स्वस्थ्य भारत ट्रस्ट के सांतवें स्थापना दिवस समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन के साथ ही स्वस्थ्य भारत यात्रा के सारथी रहे लोगों को सम्मानित भी किया गया है। ट्रस्ट द्वारा सेवा के क्षेत्र में काम कर रहे जबलपुर के स्वयं सेवी संगठन विराट हेपसिस, कस्तुरबा स्वयं सेवी संगठन और केरल की एक अन्य सेवी संगठन को सम्मानित भी किया गया। स्वस्थ्य भारत ट्रस्ट के चेयरमैन आशुतोष सिंह ने कहा कि अपनी सात साल की यात्रा में संगठन ने बेटी बचाओ आंदोलन, जनऔषधि आदि विषयों पर काम किया है।