अभिषेक, नई दिल्ली
बायपास ऑपरेशन करवाने वाले मरीजों को अब एंजियोग्राफी, एक्स-रे जैसी जांच नहीं करानी पड़ेगी। नई तकनीक की मदद से ऑपरेशन थियेटर के टेबल पर ही डॉक्टर यह जान सकेंगे कि सर्जरी के दौरान ग्राफ्ट की फिटिंग कितना परफेक्ट हुआ है और साथ ही यह भी पता लग जाएगा कि भविष्य में मरीजों को परेशानी होगी या नहीं। पहली बार देश में फ्लोरोसेंट ग्रीन एसपीवाइ तकनीक की मदद से ट्रीटमेंट की शुरुआत की गई है।
मैक्स हॉस्पिटल के कार्डियेक सर्जन डॉक्टर रजनीश मल्होत्रा ने बताया कि आमतौर पर बायपास सर्जरी में आरटरी में ग्राफ्ट लगाया जाता है। सर्जरी के बाद ग्राफ्ट कितना परफेक्ट काम कर रहा है इसके लिए मरीज की एंजियोग्राफी होती है। साथ ही मरीज को एक्स-रे की रेज से भी गुजरना होता है। एंजियोग्राफी के लिए 50 एमएल डाई यूज की जाती है। इतनी मात्रा में डाई यूज करने से किडनी डैमेज का खतरा रहता है। इस प्रॉसेस की पूरी फीस लगभग 15 हजार रुपये आती है।
वहीं दूसरी ओर एसपीवाइ तकनीक काफी आसान और यूजफुल है। इसमें ऑपरेशन के तुरंत बाद एक इंजेक्शन के जरिए यह डाई इंजेक्ट की जाती है। इस प्रॉसेस में 50 एमएल की जगह केवल 0.5 एलएल डाई ही यूज होती है। काफी कम मात्रा में डाई यूज होने से किडनी डैमेज का कोई खतरा नहीं रह जाता है। साथ कैथलेब और एक्स-रे भी करवानी होती है। इससे मरीज को अस्पताल से जल्द छुट्टी मिल जाती है। हालांकि इस तकनीक की फीस सामान्य प्रक्रिया से 5 हजार रुपये ज्यादा है। डॉक्टर ने बताया कि वर्तमान में यह तकनीक सिर्फ मैक्स अस्पताल के पास है।
फ्लोरोसेंट ग्रीन एसपीवाई तकनीक से स्किन के डेड और एक्टिव सेल का भी पता चल जाता है। इसे जैसे ही इंजेक्ट किया जाता है, इससे एक्टिव स्किन सेल का पता चल जाता है। डॉक्टर रजनीश ने बताया कि हाल ही में मैक्स में एक्सीडेंट का एक मामला था। एक्सीडेंट से 16 साल के सिमरन के पैर में मल्टीपल फ्रैक्चर हुआ था। इस तकनीक से तुरंत पता चल गया कि उसके शरीर में कहां-कहां एक्टिव सेल है और कहां स्किन डेड हो चुका है। पहले इसके लिए इंतजार करना पड़ता था। जानकारी मिलने के बाद हम एक्टिव सेल निकालकर रिकंस्ट्रक्ट सर्जरी करने में सफल रहे और दस दिन के अंदर सिमरन को अस्पताल से छुट्टी मिल गई।