बंगलुरू,
मणिपाल हॉस्पिटल ने एक जानलेवा केस में सांस नलिका के ट्युमर का इलाज करने में सफलता हासिल की है। ट्युमर इतना बड़ा था कि सांस नली को अवरूद्ध कर दिया था तथा मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। मालूम हो कि महिला का बीते दो साल से अस्थमा समझ कर इलाज किया जा रहा था।
एक 72 वर्षीय बुजुर्ग महिला साल प्रभा सांस लेने में तकलीफ और सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आने की परेशानी के साथ अस्पताल पहुंची थी। बंगलूरू के ओल्ड एअरपोर्ट रोड स्थित मणिपाल हॉस्पिटल में कार्यरत इंटरवेशनल पल्मोनोलॉजी, क्रिटिकल केअर एन्ड स्लीप मेडिसिन विशेषज्ञ डॉ. सचिन डी के नेतत्व में महिला की जांच की गई। पाया गया कि उनकी सांस की नली में ट्युमर बना हुआ है जिससे उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो रहीं है। जिसें ट्रैकहिल ट्युमर कहा जाता है। दो साल से महिला को अस्थमा है ऐसा समझकर इलाज किया जा रहा था।
जब इस मरीज का सीटी स्कैन कराया गया तब यह पाया गया की उनकी सांस नलिका में एक बड़े आकार का ट्युमर है। मरीज को सांस नली में सांस लेने के लिए केवल एक सा दो एमएम की जगह थी। मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया और ट्युमर का इलाज करने के लिए ब्रॉकोस्कॉपी, डीबल्कींग कॉटराईजेशन और लेजर के माध्यम से ऑपरेशन किया गया। इसके बाद सांस नलिका अपनीं जगह पर बनी रहे इसलिए उसमें धातू का एक स्टेंट फिक्स किया गया। इसमें साधारण तौर पर स्टेंट इसलिए लगाया जाता है जिससे ट्युमर या लिम्फडेनोपैथी (एक या अधिक लिम्फनोड्स बढ़ना) के कारण नलिका दब ना जाए। डॉ. सचिन ने कहा कि सांस नलिका में ट्युमर की ऐसी घटनाएं काफी कम दिखाई देती हैं और कुल मामलों में यह केवल एक प्रतिशत ही पाया जाता है। सांस नलिका में पाए जाने वाले 80 प्रतिशत ट्यूमर कैंसरर्स होते है।
साधारणतौर पर एडेनॉईड सायटिक कार्सिनोमा होता है (जो हमारे मरीज में देखा गया था) उसके बाद स्क्वेनामस सेल कार्सिनोमा होता है। पुरूषों में महिलाओं के एवज में यह तीन गुना अधिक पाया जाता है। साधारणतौर पर यह बीमारी उम्र के 50 से 60 साल के दौरान पायी जाती है।
सचिन डी के अनुसार ब्रॉकोजेनिक सार्किनोमा (फेफड़ों का कैंसर) या अधिक मात्रा में कैंसर के कारण इस्फागस या सांस की नली में भी कैंसर का प्रभाव हो सकता है। इसके अलावा लिम्फ नोड्स के सिकुडनें या अन्य अवयवों में बीमारी के कारण भी कभी कभी सांस की नलिका में परेशानी पैदा हो सकती है। यह सर्जरी पूरी तरह सफल हुई और बिना किसी के श्रीमति प्रभा को घर भेजा गया। जेनेटिक म्युटेशन्स के साथ ही खराब हवा के कारण (धुएं और प्रदुषण) से भी यह ट्युमर बनता है. स्ट्रीडॉर या कफ में से खून आना इस ट्युमर का प्रमुख लक्षण माना जाता है।
अध्ययनों के अनुसार लोग अक्सर यह गलती करतें है की सांस लेते समय आवाज को वह अस्थमा समझ बैठते है और कफ के साथ खून आने को ट्युबरक्लोसिस या टीबी मान लेते हैं। ऐसी स्थिती में योग्य डॉक्टर की सलाह लेकर योग्य जांच करानी चाहिए। अगर शुरूआती समय में इलाज नहीं किया गया यह ट्युमर जानलेवा भी हो सकता है।