नई दिल्ली
कश्मीर के बांडीपुरा निवासी फामिता को तीन बार अस्पताल में भर्ती किया गया, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हो पा रहा था। लिवर ने काम करना बंद कर दिया था, शरीर और आंखें पीली पड़ी थीं, पेट में दर्द लगातार बना हुआ था। लिवर प्रत्यारोपण के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, लेकिन परिजन इलाज का खर्च नहीं उठा सकते थे। इलाज के लिए सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर अपील की गई। अपील को सबने गंभीरता से लिया, और एक हफ्ते में ही 19 लाख रुपए इकठ्ठा हो गए। सर्जरी के बाद छह लाख रुपए बच भी गए हैं, जिसे फामिता की आगे की दवाओं के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
फातिमा की सर्जरी करने वाले इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर और पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. अनुपम सिब्बल ने बताया कि फामिता को कश्मीर से दिल्ली लाने तक और लिवर बदलने तक की सर्जरी का पैसा क्राउड फंडिग से जुटाया गया, इसमें फातिमा के भाई तौफीन की अहम भूमिका रहीं, बांडीपुरा गांव में पहले स्थानीय स्तर पर इलाज की अपील की गई वहां से जुटाए गए फंड के बाद फामिता को दिल्ली लाया गया। डॉ. सिब्बल ने बताया कि फातिमा की तबियत को देखे हुए अस्पताल प्रशासन ने मुहिम मे साथ दिया, जिसके बाद हफ्ते भर के अंदर 18 लाख रुपए की रकम खाते में आ गई। फामिता को लिवर की ऑटो इम्यून हेपेटाइटिस बीमारी थी, जिसमें लिवर की ही सेल्स लिवर को खराब कर रही थी, फातिमा का लिवर तुरंत बदला जाना था। पिता ने बच्ची को लिवर दिया और लोगों की मदद से जुटाई गई धनराशि से फातिमा का लिवर बदला गया। इलाज में कुल 12 लाख रुपए खर्च हुए, बाकी रकम को फातिमा के आगे के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। सर्जरी के दौरान बच्ची का पूरा लिवर निकाल पर पिता के लिवर का एक हिस्सा प्रत्यारोपित किया गया। सर्जरी के बाद बच्ची का 11 किलोग्राम वजन कम हो गया, दस लीटर पानी शरीर से निकाला गया। लिवर प्रत्यारोपण और हेपेटोबाइली पैनक्रियाटिक सर्जरी विभाग के डॉ. नीरव गोयल ने बताया कि बच्ची को गंभीर पीलिया था, पेट में पानी भर चुका था और लिवर तक खून पहुंचाने वाली खून की नलियों पर दवाब बढ़ रहा था। बच्ची का तुरंत लिवर बदलना बहुत जरूरी था। यह बीमारी दो लाख बच्चों में से किसी एक को होती है। बेहद अंर्तमुखी स्वभाव की फातिमा ने बताया कि वह बड़ी होकर टीचर बनना चाहती है।
मदद के लिए आगे आएं तो करें पड़ताल
इलाज के लिए क्राउड फंडिंग का चलन आजकल तेज हो रहा है। कई संगठन इसमें काम कर रहे हैं। डॉ. अनुपम ने बताया कि इस तरह के प्रयास से गरीब बच्चों के इलाज में मदद की जा सकती है। इसके लिए जरूरी है कि दान करने से पहले मरीज के इलाज संबंधी कागज और अस्पताल से जानकारी पुख्ता कर लें। फातिमा की मदद के लिए हर धर्म के लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।