नई दिल्ली,
डयूटी के दौरान अपने ऊपर होने वाले हमले के खिलाफ देश भर के डॉक्टरों ने विरोध जताया। आईएमए के आह्वान पर दिल्ली सहित पूरे देश में डॉक्टरों ने इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और सरकार से सख्त कानून लाने की मांग की, ताकि डयूटी करने वाले डॉक्टर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें और वो बिना डरे मरीजों का इलाज कर पाएं। शुक्रवार को दिल्ली में भी डॉक्टरों ने एम्स के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि, एम्स के रेजिडेंट डॉक्टर सीधे तौर पर प्रदर्शन में हिस्सा नहीं लिए, लेकिन वो भी इस मांग का समर्थन कर रहे थे।
डॉक्टरों का यह विरोध एक प्रकार से सांकेतिक था। डॉक्टरों के इस विरोध प्रदर्शन से कहीं पर या किसी भी अस्पताल में इलाज पर कोई असर नहीं हुआ। अस्पतालों में काम करने वाले डॉक्टर डयूटी के दौरान ब्लैक बैच पहने हुए थे। वहीं कुछ डॉक्टरों ने एम्स के बाहर विरोध जताया और अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। आईएमए के अनुसार डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को लेकर केंद्रीय की कानून की मांग की है। 2019 के तहत ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला के लिए 10 साल की जेल की सजा के प्रावधान की मांग की गई है, जिसका गृह मंत्रालय ने यह कहकर विरोध जताया है कि यह विशेष कानून संभव नहीं है, क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है।
आईएमए का कहना है कि पीसीपीएनडीटी कानून और क्लिनिकल स्टैबलिशमेंट एक्ट जैसे कई केंद्रीय स्वास्थ्य कानून हैं। वर्तमान में 21 राज्यों में स्थानीय कानून हैं, लेकिन हम हिंसा से डॉक्टरों की रक्षा के लिए मजबूत केंद्रीय कानून की जरूरत है और इसलिए यह मांग कर रहे हैं। अभी हाल ही में असम के होजल में एक जून को उदाली मॉडल अस्पताल में कोविड और निमोनिया से ग्रस्त एक मरीज की मौत के बाद उसके तीमारदारों ने अस्पताल पर हमला किया था। बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने मामले में संज्ञान लेते हुए असम सरकार और राज्य पुलिस के प्रमुख को कथित हमले के संबंध में जांच का निर्देश दिया था और मामले में जरूरी, दंडात्मक कार्रवाई करने को कहा था।