नई दिल्ली,
अंडे के सेवन को बढ़ावा देने के प्रयास को एक अध्ययन से तगड़ा झटका लगा है। जिसमें यह कहा गया है कि अंडे का नियमित सेवन करने वाले लोगों में डायबिटिज होने की संभावना अधिक रहती है। अध्ययन में पाया गया कि 57 प्रतिशत ऐसे लोगों में डायबिटिज टाइप टू का खतरा अधिक देखा गया जो लंबे समय से हफ्ते में छह दिन अंडे का सेवन कर रहे थे। जबकि एक हफ्ते में एक या दो बार अंडे खाने वालों में यह खतरा कम देखा गया।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि हावर्ड विश्वविद्यालय द्वारा जर्नल डायबिटिज केयर में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में इस तथ्य का खुलासा हुआ है। 20,703 पुरूष और 36,295 महिलाओं पर 20 साल के लंबे अध्ययन के बाद यह परिणाम निकाला गया है, इस श्रेणी में 50 प्रतिशत लोग प्रतिदिन तीन समय अंडे का सेवन करने वाले रखे गए और 50 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिन्होंने अंडे का इस्तेमाल सप्ताह में केवल एक बार किया। इस दौरान पाया गया कि रोज के खाने में किसी भी तरह अंडा शामिल करने वाले 1,921 पुरूष और 2,112 महिलाओं में इस दौरान टाइप टू डायबिटिज देखी गई। जबकि सप्ताह में एक बार अंडे खाने वाले लोगों का शुगर स्तर सामान्य देखा गया। लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल की डायटिशियन डॉ. किरन दीवान कहती हैं कि अंडे में डायट्री कोलेस्ट्राल (200 एमजी प्रति अंडा) अधिक होने के कारण अंडे से डायबिटिज की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके डायबिटिज के शिकार लोगों के लाइफ स्टाइल की भी मॉनिटरिंग करनी होगी। शहरी क्षेत्र में 80 प्रतिशत लोगों की गलत दिनचर्या डायबिटिज का कारण है।
अंडे में खासियत
-एक अंडे में 1.5 ग्राम सैचुरेटेड फैट होता है
-अंडे ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता हैं
-अंडे में 0.7 ग्राम पोलीसैचुरेड फैट होता है, जो ग्लाइसीमिक इंडेक्स बढ़ाता है।
कम वजन के साथ पैदा हुए बच्चे डायबिटिज के करीब
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के इंडोक्रायनोलॉजिस्ट डॉ. दिनेश धनवाल कहते हैं कि जन्म के समय कम वजन लेकर पैदा होने वाले बच्चों में आगे चलकर डायबिटिज होने का खतरा अधिक देखा गया है। डायबिटिज रिसर्च केन्द्रों पर किए गए इस अध्ययन को बारकस हाइपोथिसेस कहा जाता है। दरअसल दो किलोग्राम से कम वजन लेकर जन्म लेने वाले बच्चों का पैंक्रियाज उसके उस समय के वजन के अनुसार काम करने योग्य होता है। इसी समय पैंक्रियाज के बीटा सेल्स उत्सर्जित करने की क्षमता भी कम हो जाती है। लेकिन बढ़े होने के साथ-साथ बच्चे जंक फूड और अधिक वसा युक्त खाने लगते हैं, जिसके अनुसार बीटा सेल्स स्त्रावित नहीं हो पाती। डॉ. दिनेश कहते हैं कि कम वजन के बच्चों के माता पिता को उन्हें दिए जाने वाले खाने पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।