आधारशिला की साझेदारी से इन अस्पतालों में निशुल्क होगा डायलिसिस

नई दिल्ली

फर्ज कीजिए घर में कोई किडनी का मरीज है, जिसे हफ्ते में दो बार डायलिसिस की जरूरत होती है, खून साफ करने के लिए की जाने वाली यह प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जबकि दोनों किडनी पूरी तरह काम करना बंद कर देती हैं। सही समय पर डायलिसिस नहीं होने पर मरीज को कई तरह के जोखिमों का खतरा बना रहता है। डायलिसिस के लिए सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं काफी जटिल हैं, सफदरजंग अस्पताल में अकसर डायलिसिस की मशीनें खराब रहती है यदि मशीन सही होती हैं तो पानी की किल्लत बनी ही रहती है, उसपर से सरकारी अस्पतालों पर मरीज का बोझ, इन सब चुनौतियों के बीच सही समय पर डायलिसिस मिलना काफी मुश्किल होता है।

लेकिन देश की कुछ चुनिंदा समाज सेवी संस्थाएं ही इस समस्या के समाधान के लिए काम कर रही हैं। आधारशिला ट्रस्ट ने इसी पहल के तहत लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में रीनल यानि किडनी केयर प्रोजेक्ट की शुरूआत की। रीनल इंडिया सर्पोटिंग ट्रस्ट और आधारशिला रीनल केयर प्रोजेक्ट के तहत लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के साथ महत्वपूर्ण साक्षेदारी के जरिए किडनी के मरीजों को निशुल्क डायलिसिस दिया जाएगा। हालांकि इस प्रोजेक्ट की औपचारिक शुरूआत वर्ष 2024 के मई महीने में की गई, इसका लक्ष्य अगले पांच साल में 50,000 किडनी मरीजों को निशुल्क डायलिसिस सुविधा उपलब्ध कराना है। इस लिहाज से दिल्ली या आसपास रहने वाले किसी मरीज को डायलिसिस की जरूरत है तो वह लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में निशुल्क डायलिसिस के लिए संपर्क कर सकते हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थय सेवाओं के महानिदेशक प्रोफेसर डॉ अतुल गोयल, रीस्ट यानि रीनल केयर प्रोजेक्ट की प्रबंध निदेशक श्वेता रावत, आधारशिला ट्रस्ट की संस्थापक नीना जॉली व गीता अरोड़ा, लेडी हर्डिंग मेडिकल कॉलेज की निदेशक सरिता बेरी सहित अन्य स्टाफ की उपस्थिति में इस सुविधा की औपचारिक शुरूआत की गई। महानिदेशक स्वास्थ्स्य सेवाएं स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय प्रोफेसर डॉ अतुल गोयल ने कहा कि इस तरह की साझेदारी देश के लिए बहुत जरूरी है, जिससे मरीजों को बेहतर इलाज सही समय पर दिया जा सके, आधारशिला रीनल केयर प्राजेक्ट और रीनल इंडिया सर्पोटिंग ट्रस्ट की संयुक्त साझेदारी निश्चित रूप देश के स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने में सहायक साबित होगी।

हर साल किडनी के आखिरी चरण के दो लाख से अधिक मरीज

किडनी खराब होने की अंतिम अवस्था जिसे एंड स्टेज रीनल डिसीस या ईएसआरडी भी कहा जाता है। नेटहेल्थ के वर्ष 2023 के डायलिसिस डिलिवरी इन इंडिया- डिमांग एंड पॉलिसी इंसाइट के सर्वेक्षण के अनुसार हर साल देश में दो लाख से भी अधिक नये मरीज देखे जाते हैं। इन मरीजों की डायलिसिस की जरूरत को पूरा करने के लिए हर साल लगभग 3.4 करोड़ डायलिसिस सेशन की जरूरत होती है, जबकि मांग के अनुरूप देश में डायलिसिस की केवल 22,500 डायलिसिस मशीन ही उपलब्ध हैं। ऐसे में सभी को सही समय पर डायलिसिस मिल पाएगा यह एक बड़ी चुनौती है। केवल 25 प्रतिशत मरीज ही डायलिसिस सुविधा का लाभ उठा पाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मांग के अनुसार आपूर्ति के लिए देशभर में 65 हजार डायलिसिस सेंटर की जरूरत है, जिसे संचालित करने के लिए 20 हजार प्रशिक्षित तकनीशियन और नेफोलॉजिस्ट की जरूरत है। जिससे डायलिसिस की सुविधाओं को बेहतर किया जा सके। अकेले दिल्ली एनसीआर में हर साल 3000 मरीज को डायलिसिस की जरूरत होती है जिनमें किडनी के अंतिम अवस्था की पहचान की जाती है। निजी अस्पतालों की डायलिसिस सुविधा महंगी होने के कारण सभी मरीज निजी अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते हैं। मई 2024 से शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के माध्यम से दिल्ली एनसीआर में तीस डायलिसिस मशीनें शुरू की जा चुकी हैं। जिसकें राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, सुचेत्रा कृपलानी बाल चिकित्सालय और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज शामिल हैं। जहां अब तक आठ हजार से अधिक मरीजों का डायलिसिस किया जा चुका है। मालूम हो कि आधारशिला ट्स्ट और रीनल इंडिया सर्पोटिंग ट्रस्ट के माध्यम से हर साल 20,000 डायलिसिस सेशन करने का लक्ष्य रखा गया है।

सुविधाओं का विस्तार

  • रीनल केयर प्रोजेक्ट के तहत लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में 20 डायलिसिस मशीनें लगाई गई हैं। जो वर्तमान लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और अन्य सहायक अस्पतालों की डायलिसिस यूनिट को और बेहतर करने का काम करेगीं।
  • मई 2024 में इस प्रोजेक्ट की औपचारिक शुरूआत की गई थी, प्रोजेक्ट के तहत आगमी पांच साल में इंडियन सोसाइटी फॉर पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजिस्ट के साथ मिलकर प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। जिससे सही समय पर बच्चों में किडनी संबंधी तकलीफों या एक्यूट किडनी इंजरी की पहचान हो सके और इलाज शुरू किया जा सके।
  • एआरसीपी एक्यूट रीनल केचल प्रोजेक्ट के तहत पहले से ही आउटरीच कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। जिसके माध्यम से अस्पतालों में किडनी स्क्रीनिंग के जरिए सीकेडी यानि क्रानिक किडनी डिसीस के मरीजों की सही समय पर पहचान हो सके, अब तक दस हजार मरीजों की स्क्रीनिंग इस प्रोजेक्ट के माध्यम से की जा चुकी है। जिसमें से तीन प्रतिशत मरीज सीकेडी के शिकार पाए गए।

 

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