नई दिल्ली,
तकनीक का इस्तेमाल अब लगभग हर मुश्किल काम को आसान बनाने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में यदि आपसे यह कहा जाए कि पुराने से पुरानी कब्ज का इलाज भी साफ्टवेयर आधारित तकनीक की सहायता से संभव है तो यह गलत नहीं है। सरगंगाराम अस्पताल ने बायोफीडबैक बैलून थेरेपी की मदद से कब्ज का इलाज किया जा रहा है। इसके लिए कंम्यूटर साफ्टवेयर आधारित जीआई मोटिलिटी लैब में व्यक्ति के मल प्रक्रिया की निगरानी की जाती है। इसे विशेषज्ञों ने एक सफल और कारगर तकनीक बताया है। एक अनुमान के अनुसार भारत में 20 से 30 प्रतिशत व्यस्क आबादी कब्ज से परेशान है। यह समस्या प्रत्येक आयुवर्ग के लोगों में देखी गई है।
सरगंगाराम अस्पताल के चिकित्सकों ने पुरानी से पुरानी कब्ज में एक कारगर तकनीक का इस्तेमाल किया है इसके अंर्तगत बायोफीडबैक बैलून थेरेपी से कब्ज का सफल इलाज किया गया। अस्पताल के गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी विभाग के सलाहकार डॉ. श्रीहरि ने बताया कि बायोफीडबैक थेरेपी में गुब्बारे का उपयोग करके मरीजों को कई चरणों में वास्तविक समय में कंप्यूटर सहायता प्राप्त सॉफ्टवेयर प्रोग्राम द्वारा मल निकासी की निगरानी हमारी जी.आई. मोटिलिटी लैब (प्रक्रिया के बारे में प्रोग्राम्ड की गई तकनीक) में की जाती है। प्रो. अरोड़ा ने कहा कि पिछले दो वर्षों में हमारे पास डिस्सिनर्जिया (बड़ी आंत और मल द्वार के बीच में तालमेल की कमी) के 72 मरीजों की केन्द्र पर बायोफीडबैक थेरेपी की गई। बायोफीडबैक थेरेपी के साथ इन मरीजों के कब्ज की समस्या में 72 प्रतिशत की सफलता दर देखी गई, अधिकांश मरीजों ने सभी का बेहतर तरीके से पेट साफ होना देखा गया। 82 प्रतिशत तक की सफलता दर के साथ कम उम्र के कब्ज के परेशानी मरीजों में भी इस प्रक्रिया की बेहतर प्रतिक्रिया देखी गई।
सरगंगाराम अस्पताल के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर गैस्ट्रोइंटरोलॉजी और पैंक्रियाटिक विभाग के चेयरमैन डॉ. अनिल अरोड़ा ने बताया कि हाल ही में हमारे पास पुरानी कब्ज के 180 मरीज आए। जिनकी आयु सीमा 11-86 वर्ष, औसत आयु 49 वर्ष, 80% पुरुष थी। इन मरीजों पर हमने एक अध्ययन किया। कब्ज की परेशानी के शिकार अधिकांश मरीजों में मल की अपूर्ण निकासी लगभग 98 प्रतिशत मरीजों में यह दिक्कत देखी गई। इसके बाद शौच पर अत्यधिक दबाव 87 प्रतिशत मरीजो में देखा गया। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से अधिकतर 88 प्रतिशत मरीजों ने कब्ज के कारण का पता लगाने के लिए पहले ही कॉलोनोस्कोपी करा ली थी। कब्ज के कारण का मूल्यांकन करने के बाद, यह देखा गया कि 56 प्रतिशत मरीजों में डिस्सिनर्जिया नामक एनोरेक्टल फ़ंक्शन का समन्वय न होना देखा गया, और 15 प्रतिशत मरीजों में धीमी गति से मल निकासी की समस्या (धीरे से मल निकलता है और आंतो की चाल सुस्त थी और मल का रास्ता समय पर नहीं खुलता था) देखी गई। शेष मरीजों में या तो सामान्य निकासी न हो पाना या आई.बी.एस. (इरिटेबल बाउल सिंड्रोम) प्रकार की कब्ज थी। बायोफीडबैक थेरेपी (बैलून द्वारा पुरानी कब्ज का इलाज) नामक एक विशेष तकनीक से कब्ज वाले मरीजों में अत्यंत उपयोगी होती है, जिन्हें एनोरेक्टल डिस्सिनर्जिया (पुरानी कब्ज जिससे मल नहीं निकलता) होता है।
क्या है साफ्टवेयर आधारित तकनीक
कब्ज के इलाज़ और प्रबंधन के लिए एक वैज्ञानिक तरीका, जिसे सर गंगा राम अस्पताल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग में जी.आई. मोटिलिटी लैब’ के रूप में स्थापित किया गया है। प्रो. अरोड़ा के अनुसार कब्ज के इलाज में एक आम गलती है कि सभी कब्ज मरीजों को केवल एक तरह का ही इलाज देकर उनकी समस्या दूर करने की कोशिश की जाती है। जबकि कब्ज के प्रकार के आधार पर इलाज का दृष्टिकोण भी अलग होता है। सरगंगाराम अस्पताल में कब्ज के सटीक कारण की पहचान करने के लिए अत्याधुनिक परीक्षणों जीआई मोटिलिटी लैब का उपयोग की सहायता से मरीजों की उनकी समस्या के अनुसार इलाज किया जाता है। इसके लिए कंम्यूटर आधारिक लैब से मल निकासी की मॉनिटरिंग की जाती है।
कब्ज के कितने प्रकार
एनोरेक्टल मैनोमेट्री कॉलोनिक ट्रांजिट स्टडीज और एम.आर. डिफेकोग्राफी जैसे उन्नत परीक्षणों का उपयोग करके, चार प्रकार के कब्ज जैसे धीमी गति से मल निकासी, सामान्य लेकिन रूक रूक कर मल निकासी कब्ज का निदान किया जा सकता है। एनोरेक्टल डिससिनर्जिया और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम से संबंधित कब्ज जिसे आईबीएस-सी कहा जाता है, जिनमें से सभी के अलग-अलग तौर-तरीके और फार्माकोथेरेपी प्रक्रिया अपनाई जाती है। हैं। मरीजों को कब्ज के प्रकार के अनुसार व्यक्तिगत और निर्देशित उपचार किया जाता है जोकि परिणामों में काफी सुधार करता है और मरीजों की इलाज के प्रति संतुष्टि को बढ़ाता है। कब्ज के प्रकार का उचित और समय पर मूल्यांकन और सही चिकित्सा पुरानी कब्ज के कई असहाय मरीजों के लंबे समय तक चलने वाले कष्ट को कम करने में बहुत मददगार साबित हो रही है।