नई दिल्ली
दो दिन पहले ही आंखों की समस्या के लिए एक निजी डॉक्टर से मिलने पहुंची। तीन साल पहले निजी चश्में की दुकान से रैंडम आई चेकअप कर चश्मा बनवा लिया था, लेकिन फिर पता चला कि ब्रांडेड चश्में की दुकानों मे आंखों की जांच अधिक बेहतर तरीके से नहीं होती। तीन साल बाद एक बार लिखने और पढ़ने में दिक्कत हुई तो डॉक्टर के पास जाना जरूरी हो गया, अब जो लेंस सुझाया गया वो प्रोग्रेसिव था, मतलब नंबर दूर और पास दोनों के कमजोर, खैर लंबे समय तक लैपटॉप या मोबाइल स्क्रीन के अधिक संपर्क में रहने वालों को आंखों की समस्या बढ़ना लाजिमी है। बात आंखों की ही चल रही थी तो हमने इससे जुड़े उपचार की अन्य विधियों को भी तलाश डाला, सबसे बेहतर दिखा ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ आयुर्वेदा में दिया जाने वाला बिड़ालक उपचार, आप सबकी तरह मेरे लिए भी आंखों की उपचार की यह विधि बिल्कुल जानी पहचानी नहीं थी।
बिड़ालक और पिंडी आंखों में सूखापन, आईलिड़स में सूजन, आंखों से पानी आना आदि परेशानियों के लिए दिए जाने वाले दो आयुर्वेदिक उपचार है। मरीज को चश्मा या किसी तरह का आईड्राप डालने की सलाह देने की जगह आयुर्वेदिक मेडिकेटेड दवाओं को सूती कपड़े की मदद से आंखों के घेरे के ऊपर रखा जाता है। एआईआईए के आयुर्वेदाचार्या डॉ अंकुर त्रिपाठी कहते हैं कि बिड़ालक में आंखों की पलकों की बाहरी सतह पर दवाई का लेप लगाया जाता है जबकि पिंडी में एक सूती कपड़े के ऊपर दवाओं को रखकर उसे आंखों के ऊपर रखा जाता है, इससे दवाओं का प्रभाव सीधे रूप से आंखों तक पहुंचता है। यह प्रक्रिया तीस से 35 मिनट तक हफ्ते भर के लिए की जाती है। इसके बार फिर मरीज की आंखों का चेकअप किया जाता है, जरूरत पड़ने पर प्रक्रिया को हफ्ते तक फिर दोहराया जाता है।
इसके साथ ही बढ़ती उम्र में नेत्र संबंधी विकारों को दूर करने के लिए आयुर्वेद में कई पद्धतियां है जिसमे से एक है नेत्र तर्पण, जिसमे मूंग की दाल के लेप को आँखों के चारों तरफ़ कटोरीनुमा आकार दिया जाता है और हल्के तिल के गुनगुने तेल को आँखों में भरा जाता है और सौ से डेढ़ सौ बार पलक झपकानी होती है आधे घंटे में, ये प्रक्रिया लगभग एक हफ़्ते चलती है और इस थेरेपी के बाद आपके चक्षु खुल जाते हैं नेत्रों का शुद्धिकरण हो जाता है आप भी अपने आसपास आज़मा कर देखिए।
आयुर्वेद में आंखों के अन्य उपचार-
- नास्य – या नाक की बूंदें
आयुर्वेद में नाक को मस्तिष्क तक जाने वाला मार्ग माना जाता है, जहाँ सभी इंद्रियाँ निवास करती हैं। इसके लिए कई औषधीय तेल और घी का उपयोग किया जा सकता है। स्वस्थ व्यक्ति के लिए तिल का तेल बेहतर होता है। यदि आप खांसी और जुकाम से पीड़ित हैं तो इसे नहीं करना चाहिए।
- नेत्र सेक
आंखों पर धीरे-धीरे और लगातार तरल पदार्थ डालना। उदाहरण के लिए गुलाब जल, दुग्ध, त्रिफला जल, औषधीय क्वाथ और तेल आदि डालने के आंखों की थकान दूर होती है तथा दृश्यता बेहतर होती है।
- अंजन – आंखों पर लगाने का तरीका –
इसे रोजाना 2 रूपों में और सप्ताह में एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि आंखें कफ बढ़ने से आसानी से प्रभावित होती हैं, इसलिए कफ को नियमित रूप से साफ करना जरूरी है। इसके लिए तुपंजन का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- पादभ्यंग या पैरों की मालिश –
मूल घी से लेकर औषधीय तेलों तक, किसी भी चीज से, इसे रोजाना किया जा सकता है, ताकि तंत्रिका संबंधी विकार और तलवों में दरारें न आएं और दृष्टि में भी सुधार हो। पैरों के तलवे की मालिश करने से आंखों को आराम मिलता है।
- मुख लेप –
चेहरे की त्वचा पर लगाने के लिए विभिन्न जड़ी-बूटियों का उपयोग करना, जो न केवल चेहरे की रंगत और चमक को बेहतर बनाता है, बल्कि इंद्रियों के कामकाज को भी बेहतर बनाता है। चंदन, वेटिवर, हल्दी, सारिवा, मुलेठी आदि का उपयोग पानी या दूध के साथ किया जा सकता है।
- योग –
योग से ‘त्राटक’ जैसी प्रक्रियाओं के साथ-साथ नियमित रूप से आंखों की हरकतें निश्चित रूप से आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद कर सकती हैं।
- स्नान –
आयुर्वेद में सलाह दी गई है कि सिर के ऊपर गर्म पानी से स्नान न करें क्योंकि इससे दृष्टि बाधित हो सकती है। आंखों की सुरक्षा के लिए गर्म की जगह ठंडे पानी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- पर्याप्त मात्रा में पानी पीना
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आजकल हम लगातार कंप्यूटर, मोबाइल, स्क्रीन आदि के संपर्क में रहते हैं, जिससे आंखों में सूखापन हो सकता है।
- आहार –
पुराने चावल और गेहूं, हरी चने, घी, अनार, त्रिफला, शहद, सेंधा नमक, काली राल आदि आंखों के स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं।
उपरोक्त बताए गए बहुत ही बुनियादी सुझाव आपकी आंखों को बेहतर बना सकते हैं ताकि आप बिना किसी बाधा के खूबसूरत दुनिया को देख सकें और उसका आनंद ले सकें।