नई दिल्लीः 70 फीसदी से अधिक भारतीय ग्लूकोमा के खतरे की चपेट में हैं और इनमें से 2 लाख से अधिक पीड़ित अपनी दृष्टि गंवा चुके हैं। इसे खामोश बीमारी कहा जाता है जिससे दृष्टिहीनता तक आ सकती है। लिहाजा लोगों में जागरूकता बढ़ाना जरूरी हो गया है ताकि ग्लूकोमा को महामारी के स्तर तक पहुंचने से रोका जा सके। विश्व ग्लूकोमा सप्ताह 11 से 17 मार्च के दौरान आयोजित किया जा रहा है और इसका विषय है- ‘ग्रीन-गो’ यानी अपनी आंखों की ग्लूकोमा जांच करा लें और अपनी दृष्टि को बचाएं।
सेंटर फॉर साइट के एडिशनल डायरेक्टर डॉ. रितिका सचदेव का कहना है कि, “इसका मकसद ग्लूकोमा से होने वाली नेत्रहीनता दूर करना और लोगों को नियमित रूप से आंखों की जांच कराते रहने के लिए प्रोत्साहित करना है जिसमें ऑप्टिक नर्व जांच भी शामिल है। इस बीमारी के बारे में लोगों को शिक्षित करना जरूरी है कि इसके कोई लक्षण नजर नहीं आते लेकिन यह ऑप्टिक नर्व को क्षति पहुंचाते हुए धीरे-धीरे नेत्रहीनता की कगार पर पहुंचा देता है। जिन लोगों के परिवार में डायबिटीज, हाइपरटेंशन और कमजोर रक्त संचार का इतिहास रहा है, ऐसे लोगों में विशेष तौर पर इस स्थिति का खतरा अधिक रहता है और इसलिए उन्हें नियमित रूप से नेत्ररोग विशेषज्ञों से जांच कराते रहना चाहिए।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि ग्लूकोमा विश्व में नेत्रहीनता का दूसरा और भारत में चौथा सबसे बड़ा कारण है। नेशनल हेल्थ पोर्टल इंडिया सर्वे 2017 के मुताबिक, यह लाइलाज नेत्रहीनता का प्रमुख कारण है जिसके अब तक लगभग 18 लाख मामले सामने आ चुके हैं। हालांकि ग्लूकोमा की चपेट में आने की औसत आयु 50 वर्ष देखी गई है लेकिन शारीरिक श्रमरहित लाइफस्टाइल और पश्चिमीकरण के कारण हाल के दिनों में इसकी औसत आयु भी घटती जा रही है। इसके अलावा हाल ही में देखा गया है कि इस बीमारी के पहचाने गए कुल मामलों में से 70 फीसदी मामले 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में ही पाए गए हैं।
डॉ. रितिका सचदेव के अनुसार, “आंखों से मस्तिष्क तक सूचना पहुंचाने वाली ऑप्टिक नसों में बड़ी खामोशी से क्षतिग्रस्त होते रहने के कारण आंखों में होने वाले कई तरह के डिसऑर्डर को ग्लूकोमा कहा जाता है। हाइपरटेंशन से पीड़ित रह चुके कई लोगों में एक मिथक है कि सुबह के वक्त खूब सारा पानी पीने और कुछ खास तरह के श्वसन व्यायाम करते रहने से इंट्राओकुलर दबाव कम होता है। लेकिन यदि आपमें ग्लूकोमा की पहचान हो चुकी है तो यह धारणा शायद गलत हो सकती है और आपकी स्थिति बदतर हो सकती है। लिहाजा अपनी आंखों का ओकुलर दबाव जांचने के लिए नियमित रूप से किसी नेत्ररोग विशेषज्ञ से परामर्श लेते रहना और उसका अनुसरण करना जरूरी है।”
यदि इसके लक्षण बने रहते हैं तो खास तौर से युवा पीढ़ी में ग्लूकोमा महामारी का रूप ले सकती है और इसलिए जनजागरूकता बढ़ाना जरूरी हो जाता है। ग्लूकोमा से बचाव विशुद्ध रूप से नियमित जांच पर ही निर्भर करता है, लक्षणों की शुरुआती पहचान तथा समय पर इलाज ही दृष्टिहीनता की स्थिति से बचाव करने में मददगार हो सकती है। नियमित रूप से चश्मा बदलना, मायोपिक स्थितियों से पीड़ित होना या आंखों की सर्जरी कराना तथा लंबे समय तक कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाइयों का सेवन करना ग्लूकोमा विकसित होने के बड़े खतरे को दर्शाते हैं। लिहाजा दृष्टिहीनता से बचने के लिए सावधानी बरतना ही जरूरी है।