किडनी, लीवर, हार्ट की तरह बोन ट्रांसप्लांट भी होता है। एम्स में बोन डोनेशन सालों से हो रहा है। एक इंसान के बॉडी से निकाले गए बोन यानि हड्डी से लगभग 15 से 20 लोगों को फायदा होता है। बोन डोनेशन से बोन कैंसर, जांइट रिप्लेसमेंट, बोन डिफेक्ट, शोल्डर रिप्लेसमेंट जैसी बीमारी के बाद डैमेज हुए बोन की जगह दूसरे मरीजों में डोनेट बोन रिप्लेस किया जाता है।
एम्स के ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉक्टर राजेश मल्होत्रा ने कहा कि एम्स में ऐसे डोनर से थाई बोन, लेग बोन और पेलविस बोन मुख्यतौर पर निकाला जाता है। ये बोन अलग-अलग जगहों पर बीमारी के अनुसार लगाई जाती हैं। आमतौर पर बोन की जगह मेटल का पीस लगाया जाता है, जो बॉयोलॉजिकल और नॉर्मल नहीं होता है। यही नहीं मेटल समय के साथ कमजोर हो जाता है और टूटने का भी खतरा रहता है लेकिन जब बोन एक बार जुड़ जाती है और समय के साथ वह और मजबूत होती चली जाती है। डॉक्टर ने कहा कि थाई बोन की हड्डी काफी लंबी होती है, इस हड्डी को काट-काट कर जोड़ा जाता है। खासकर बोन कैंसर के मरीजों के लिए यह प्रोसीजर काफी अहम है और इससे काफी लोगों को फायदा हो रहा है।
कैसे होता है बोन डोनेशन
जब डोनेशन के लिए डेड बॉडी लाई जाती है तब ऑपरेशन थियेटर में ही बोन निकाली जाती है। पूरा प्रोसीजर फॉलो होता है। मरीज की जांच होती है, कहीं कोई बीमारी तो नहीं है। अगर बॉडी रूम टेंप्रेचर पर हो तो 12 घंटे के अंदर बोन निकालना बेहतर होता है लेकिन अगर फ्रीज करके चार डिग्री तापमान पर रखा गया हो तो बोन 48 घंटे तक निकाली जा सकती है। इन्फेक्शन, एचआईवी, हेपेटाइटिस जैसी बीमारी की जांच की जाती है। बोन इस प्रकार निकाली जाती है कि बॉडी को कोई नुकसान नहीं हो। अच्छी तरह से सिलाई की जाती है। फिर माइनस 80 डिग्री के तापमान पर इसे ऑपरेशन थियेटर में रखा जाता है। डॉक्टर का कहना है कि अभी भी लोगों में धारणा है कि बोन निकालने से बॉडी खराब हो जाती है और बॉडी अंतिम संस्कार के लायक नहीं रहती है। यह गलत है, हम बोन को इस प्रकार निकालते हैं कि बॉडी को कोई नुकसान नहीं होता है और सभी बोन भी नहीं निकालते हैं इसलिए लोगों को आगे बढ़कर बोन डोनेट करना चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की लाइफ बचाई जा सके।