नई दिल्ली।
खाने की आयरन की मात्रा बढ़ाने के बाद भी यदि एनीमिया से छुटकारा नहीं मिल रहा है तो यह एक विशेष तरह के वायरस का भी संक्रमण हो सकता है। लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से संक्रमित करने के लिए वीपीवन, वीनीटू वीपीथ्री के जीन क्लोनिंग को जिम्मेदार माना गया है। यह जीन अपने ही तरह के कई जीन बनाकर रक्त की आरबीसी (लाल रक्त कणिकाओं) को बढ़ने से रोकते हैं। एनीमिया का दूसरा बड़ा कारण सालमोनेला वायरस भी है।
यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड की क्षेत्रीय निदेशक नोबुको होर्बी ने बताया कि बाल एवं मातृ स्वास्थ्य में एनीमिया दूसरी बड़ी समस्या बताया गया है। एनीमिया के कारणों पर किए गए शोध में पाया गया कि रक्त में एक वायरस की जीन क्लोनिंग खून को बढ़ने से रोकती है, जिससे बाद में लिवर की हेपेटाइटिस बीमारी होने की भी संभावना 40 फीसदी बढ़ जाती है। हेल्थ एंड न्यूट्रिशियन विभाग द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार वायरस का जीनोम प्रमुख तीन तरह के प्रोटीन के साथ इंकोड करता है, जिसे वीपीवन, वीपीटू व वीपीथ्री जीन कहा जाता है। वीपीथ्री जीन को चिकन एनीमिया कहा जाता है। डॉ. हार्बी ने बताया कि जीन की इंकोडिंग रोकने के लिए मरीज को इंजेक्शन के माध्यम से स्वस्थ्य प्रोटीन युक्त प्रोटोजोआ को खून में पहुंचाया जाता है। विभाग द्वारा 2500 से अधिक महिला व बच्चों पर किए गए अध्ययन में देखा गया कि 12 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं व पैदा होने की दो साल की उम्र तक 30 प्रतिशत बच्चे इसी वायरस की वजह से एनीमिया के शिकार हुए। जबकि 66 प्रतिशत मामलों में सालमोनेला वायरस को भी एनीमिया का कारक बताया गया है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पीडियाट्रिक विभाग के प्रमुख डॉ. विनोद पॉल ने बताया कि निमोनिया के एनीमिया नवजात शिशुओं की दूसरी बड़ी समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा आयोजित बाल एवं मातृत्व स्वास्थ्य की तीन दिवसीय कार्यशाला में उपस्थित एनीमिया के कारणों पर चर्चा हुई।
पीसीआर जांच है कारक
पीसीआर (पॉलिमर चेन रिएक्शन) जांच को वायरस का पता लगाने के लिए बेहतर बताया गया है। अब तक पीसआर टेस्ट एचआईवी व रक्त के अन्य संक्रमण की बीमारी का पता लगाने के लिए किया जाता था। दरअसल एचआईवी मरीजों में भी एनीमिया प्रमुख समस्या पाया गया है। पीसीआर के जरिए रक्त के सेल्स में उपस्थित वायरस के आरएनए व डीएनए की जांच की जाती है। जिससे संक्रमण की प्राथमिक अवस्था का पता लगाया जा सकता है।
एनीमिया से होने वाली अन्य बीमारी गंभीर
खून में आयरन की कमी की स्थिति अधिक दिनों तक रहने पर लिवर संबंधी परेशानियां हो सकती है। हेपेटाइटिस इसका पहला प्रभाव है। हीमोग्लोबिन के सामान्य स्तर से आयरन की मात्रा का पता लगाया जाता है। जिसकी सामान्य मात्रा 16 से 20 ग्राम है।