दिल्ली के मुदार्घर में एक डिजिटल रेडियोलॉजिकल इकाई स्थापित की गयी है, जिससे हाईटेक डिजिटल एक्स रे की मदद से विजुअल ऑटोप्सी की जा सकेगी। वर्जुअल ऑटोप्सी की मदद से छोटे से छोटे थक्कों और फ्रेक्चर का भी पता लगाया जा सकता है जिन्हें सिर्फ आंखों से देखना संभव नहीं होता। एम्स में शुरू होने वाला एशिया में इस तरह का यह पहला प्रयोग है।
एम्स के फोरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉ. सुधीर गुप्ता ने कहा कि आभासी या वर्जुअल ऑटोप्सी में परंपरागत पोस्टमार्टम की तुलना में कम समय लगता है और अंतिम संस्कार के लिए देने से पहले शव का विच्छेदन कम से कम करना होता है। डॉ. गुप्ता के मुताबिक क्षत-विक्षत या सड़े गले शव के मामलों में यह तकनीक बहुत लाभदायक है जहां सामान्य पोस्टमॉर्टम परीक्षण में चोटों का पता लगना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा कि रेडियोलॉजिकल परीक्षण से ऐसे फ्रैक्चर और खून के थक्कों का पता चल जाता है जिन्हें सिर्फ आंखों से नहीं देखा जा सकता। अकसर ऐसे छिपे हुए फ्रेक्चर और चोट होते हैं जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है। वर्चुअल ऑटोप्सी की मदद से हडिडयों में हेयरलाइन या चिप फ्रेक्चर जैसे छोटे फ्रैक्चर और रक्तस्राव का पता लगाया जा सकता है और एक्सरे फिल्म के रूप में उन्हें रखा जा सकता है। इन एक्स-रे प्लेटों का साक्ष्यों के रूप में पूरी तरह कानूनी मूल्य होता है। एम्स में फोरेंसिक मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर डॉ चितरंजन बहेरा ने कहा कि इस तकनीक से गोलियों या छर्रे जैसी बाहरी चीजों का पता लगाना आसान होता है।
क्या होगा फायदा
-शरीर में मांसपेशियों या हडिडयों में अंदर तक घुस गयीं गोलियों या छर्रे को पोस्टमॉर्टम में निकालना बहुत चुनौती का काम होता है।
-नई तकनीक से इसे पहचानना आसान होगा। अगर गोली निकालने से शव को विक्षत करना पड़े तो गोली निकालना जरूरी नहीं होगा क्योंकि फिल्म द्वारा निकाली गई गोली के प्रमाण के रूप में उतना ही महत्व होगा।
-आधुनिक तकनीक उन मामलों में आयु पता लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी जहां केवल कंकाल मिल पाते हैं।