घर के आसपास उगने वाली एक घास आपको सांस और त्वचा की बीमारी दे सकती है। कांग्रेस नाम की यह घास हर ऐसी जगह पर उग जहां और कोई वनस्पति नहीं उग सकती। कांग्रेस घास को गाजर घास भी कहा जाता है, जो लोगों में सांस संबंधी परेशानियां पैदा करती है। भीएम्स के डरमेटोलॉजी विभाग ने बीते पांच से इस घास की वजह से त्वचा के संक्रमण के शिकार हुए मरीजों का आंकड़ा जुटाया है।
एम्स के डरमेटोलॉजी विभाग के डॉ. कौशल वर्मा ने बताया कि लंबे समय से कृषि वैज्ञानिक कांग्रेस घास और उससे खेती पर पड़ने वाले असर पर अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन अब इसके सेहत संबंधी खतरे भी देखे जा रहे हैं। पारथिनियम नाम की इस जंगली घास को पानी की जरूरत नहीं होती, इसलिए यह बंजर या रेतीली जमीन पर भी तेजी से बढ़ती है। एम्स ओपीडी में त्वचा संक्रमण के हर महीने आने वाले 450 में 250 मरीजों में त्वचा संक्रमण की वजह कांग्रेस घास को पाया गया है। डा. वर्मा कहते हैं कि पारथिनियम को बज्जर घास भी कहते हैं, एक फीट के इस पौधे पर उगने वाली फूल के परागण हवा में तेजी से फैलते हैं, जो संपर्क में आने वाले लोगों को इसका शिकार बनाते हैं। दरअसल घास में हानिकारक तत्व होने के कारण ही कोई जानवर भी नहीं खाता है। ओपीडी में आए 34 वर्षीय युवक को हाथ और पैरों में खुजली की समस्या थी। संक्रमण के कारणों का पता लगाया गया तो देखा गया कि घर के पीछे एक खाली मैदान में बड़ी संख्या में कांग्रेस घास लगी हैं। मुश्किल यह है कि इससे होने वाले संक्रमण को दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है पर पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता।
कहां हुआ अध्ययन
इंडियन जर्नल ऑफ डरमेटोलॉजी में कांग्रेस घास के सेहत संबंधी असर पर शोधपत्र प्रकाशित किया गया। एम्स के डॉक्टरों के साथ मिलकर किए अध्ययन में देखा गया कि मुंबई, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश सहित हरियाणा और दिल्ली एनसीआर में पार्क और मैदान में कांग्रेस घास की पैदावार देखी गई। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भी खेती और लोगों पर कांग्रेस घास पर लंबे समय तक अध्ययन किया। कुछ इलाकों में कैमिकल और दवाओं से घास को खत्म करने के प्रयास शुरू किए गए हैं। बताया जाता है कि वर्ष 1950 में अमेरिका से आयात किए गए गेहूं पीएम 480 से यह देश में आया। इसलिए इसका नाम कांग्रेस घास पड़ा।
कैसे होता है संक्रमण
पारथिनियम का एक पौधा 20 से 30 हजार बीज पैदा करते हैं। इसके पौधे पर खिलने वाले सफेद फूल के परागण हवा के जरिए मनुष्य के संपर्क में आने है। फूल की फंगस त्चचा पर खुजली पैदा करती है, जबकि सांस के जरिए फेफड़े तक पहुंचे परागण साइनस और अस्थमा का शिकार बनाते हैं। दरअसल परागण में मौजूद सुक्ष्म कण फेफड़े में सूजन बढ़ाते हैं।
क्या करें बचाव
-यदि घर के आसपास यह घास है तो
-उसे बिना मुंह पर कपड़ा बांधे नहीं काटे
-संक्रमण हाथ से भी होता है इसलिए ग्लब्स पहने
-घास को हटाने से पहले उसपर कीटनाशी का छिडकाव करें
-बच्चों और बुजुर्गो को इसके संपर्क से दूर रखें