केवल डायटिंग तक सीमित है महिलाओं में सेहत की जानकारी

नई दिल्ली: दिल्ली की महिलाएं भले ही ख्रुद को मॉडर्न मानती हो लेकिन सेहत के मामले में उनकी जानकारी केवल डायटिंग तक ही है। उन्हें हेल्दी रहने का मतलब केवल डायटिंग और फिगर समझ में आता है, जबकि कई गंभीर बीमारी के बारे में उनकी जानकारी नगण्य है। यहां तक कि महिलाओं में होने वाली गर्भाशय कैंसर के बारे में उन्हें कम ही पता है।

गुरूतेग बहादुर अस्पताल और मेडिकल विश्वविद्यालय के गाइनोकोलॉजी विभाग द्वारा किया गया अध्ययन यह बताता है कि पढ़ी लिखी और कामकाजी दो प्रतिशत महिलाओं को गर्भाशय और स्तन कैंसर की जानकारी नहीं हैं। जिन्हें साइलेंट किलर कहा जाता है।
जीटीबी चिकित्सा विश्वविद्यालय की निदेशक प्रोफेसर डॉ. शालिनी राजाराम ने बताया कि घरेलू ही नहीं कामकाजी महिलाएं भी बीमारी को लेकर सजग नहीं है।

डॉक्टर का कहना है कि एक साल में स्क्रीनिंग के लिए आईं सेंटर पर पंजीकृत 1500 महिलाओं में दो प्रतिशत को भी गर्भाश्य के कैंसर की जानकारी नहीं है। 10 प्रतिशत महिलाएं स्तन कैंसर को जानती हैं, लेकिन स्क्रीनिंग कैसे होगी यह उन्हें भी नहीं पता। इसके विपरित डायटिंग और फिगर को लेकर महिलाओं का ज्ञान कहीं अधिक बेहतर है। मेडिकल कॉलेज की सीनियर रेजिडेंट डॉ. मोनिका गुप्ता ने बताया कि 40 प्रतिशत महिलाओं को यह बेहतर ढंग से पता है कि उन्हें खाना में अधिक वसा और कैलोरी नहीं लेनी चाहिए। जबकि इससे कहीं ज्यादा जरूरी यह जानना है कि 14 से 26 साल की उम्र के बीच गर्भाश्य कैंसर के लिए कारक हृयुमन पैपीलोमा वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन जरूरी है। जिसकी स्क्रीनिंग सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों पर होती है। स्तन कैंसर के प्रति महिलाएं जागरूक हैं, 60 प्रतिशत महिलाओं ने यह जानने के लिए कभी जांच नहीं कराई कि उन्हें स्तन कैंसर हो सकता है।

क्या है कारक
गर्भाशय कैंसर के कारक हृयुमन पैपीलोमा वायरस15 गंभीर तरह से संक्रमण कर सकता है, जिसमें एचपीवी 16 व एचपीवी 18 को अधिक कारक बताया गया है। बचाव के लिए हृयुमन पैपीलोमा वैक्सीन उपलब्ध हैं, जो 15 से 26 साल के बीच बचाव का काम करती है। एचपीवी को बीमारी का प्राथमिक निवारण कहा जाता है। एचआईवी के बाद असुरक्षित यौन संबंध से महिलाओं को होने वाली बीमारियों में गर्भाशय के कैंसर को दूसरा बड़ा कारण बताया गया है। वहीं स्तन कैंसन कैंसर का इलाज रेडिएशन के जरिए संभव जिसके लिए कारक अभी तक दो तरह के जीन का पता चल पाया है।

कैसे हो जांच
वायरस के संक्रमण का पता लगाने के लिए 19 साल के बाद प्रत्येक एक साल में पेप्सस्मीयर जांच करानी चाहिए, एक बार शरीर में वायरस का प्रवेश होने के बाद व पांच से दस साल तक सुप्तावस्था में रहता है। इसलिए सही समय पर स्क्रीनिंग जरूरी है। जबकि स्तन कैंसर की जांच के लिए मैमोग्राफी बेहतर है। राजधानी के प्रमुख स्वास्थ्य केन्द्रों पर यह जांच उपलब्ध है।

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