कैंसर को मात, बनी मां

नई दिल्ली: ब्रेस्ट कैंसर को मात देकर महिला मां बनी है। एक तरफ कैंसर का नाम सुनकर लोगों के होश उड़ जाते हैं, लेकिन इस ब्रेव महिला ने ना केवल बीमारी को हराया बल्कि एक साथ ट्वीन बेबी को जन्म भी दिया। 42 साल की महिला की सजगता की वजह से इस बीमारी का पता समय पर चला और आज वह पूरी तरह से अपनी बाकी जिंदगी जीने में सक्षम है।

20 हफ्ते की प्रेग्नेंसी के बाद जब महिला को ब्रेस्ट कैंसर का पता चला तो उसके डॉक्टरों ने उन्हें अबॉर्शन कराने की सलाह दी। लेकिन राजधानी दिल्ली के डॉक्टरों की एक टीम ने इस चैलेंज को स्वीकार किया और न केवल बीमारी से बचाया बल्कि ट्वीन बेबी की सफल डिलिवरी भी कराया। दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल के ऑन्कोलॉजिस्ट सर्जन डॉक्टर रमेश सरीन ने इस महिला का इलाज किया। उन्होंने कहा कि कैंसर की बीमारी जानने के बाद महिला ने जिस हौसले से अपना इलाज कराया वह काबिलेतारीफ है। जांच के बाद डॉक्टर ने महिला को भरोसा दिया कि वे मां बन सकती हैं, अर्बाशन कराने की जरूरत नहीं है। महिला के इलाज के लिए एक टीम बनाई गई, जिसमें मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, रेडियो ऑन्कोलॉजिस्ट, सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट, फिटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट को शामिल किया गया।

सारे टेस्ट को लेकर डॉक्टरों की टीम ने समीक्षा की। इसके बाद डॉक्टरों ने सर्जरी की और गर्भ में पल रहे ट्विन बेबी का ख्याल रखते हुए सेफ तरीके से कीमोथेरेपी भी दिया गया। डॉक्टर ने बताया कि फिटल मेडिसिन टेस्ट और गायनोकोलॉजिस्ट ने अपनी अपनी जांच के बाद बताया कि गर्भ में पल रहे ट्विन बेबी का डिवेलपमेंट नॉर्मल है और सब कुछ टाइम पर है। जनरलएनीस्थिसिया देकर महिला की ब्रेस्ट कंजर्वेशन सर्जरी लंपेक्टोमी और सेन्टिनेल नोड बायोप्सी की गई।

गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर ने महिला की लगातार मॉनिटरिंग की। ऐसी कीमोथेरेपी दी गई जो ब्रेस्ट कैंसर के सेल्स को तो डैमेज कर रहा था, लेकिन गर्भ में पल रहे ट्वीन बेबी पर इसका कोई खतरा नहीं हो रहा था। यह प्रोसीजर 8 हफ्ते तक चला। इस इलाज के दौरान फिटल मेडिसिन स्पेशलिस्ट की रेगुलर जांच और निगरानी बनी रही, ताकि यह पता चलता रहे कि बेबी पर इसका कोई साइड इफेक्ट तो नहीं हो रहा है।

डॉक्टर सरीन ने कहा कि 36 हफ्ते और तीन दिन के बाद गायनोकोलॉजिस्ट की टीम ने इलेक्टिव लोअर सेगमेंट सिजेरियन तरीके से डिलिवरी कराई। मां और दोनों बच्चे अब ठीक हैं। डॉक्टर सरीन ने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर के इलाज के लिए सभी टीम, परिवार और समाज के साथ चर्चा जरूरी है, सभी जटिलता के बाद भी इलाज संभव होता है। कीमोथेरेपी की ज्यादातर दवाइयां पहले और दूसरे ट्रिमस्टर में भी दी जा सकती है। अगर रेडिएशन की जरूरत है तो डिलिवरी के बाद दिया जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *