कोरोना के साथ जीने के लिए जरूरी है आयुर्वेद

कोरोना संक्रमण काल के बाद के जीवन की कल्पना कीजिए। क्या संक्रमण का यह दौर एक ही बारी में यूं ही देश से खत्म हो जाएगा, और जिंदगी दोबारा उसी तरह रफ्तार पकड़ेगी। विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना संक्रमण काल के बाद का दौर सही मायने में आपके आहार, व्यवहार और विचार को बदलने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। एम्स के निदेशक द्वारा कहा गया कि हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी। स्वस्थ्य और सुरक्षित रहने के लिए दिनचर्या में बहुत बदलाव करने होगें। इसमें आयुर्वेद की बड़ी भूमिका होगी, किसी भी बीमारी या संक्रमण का इलाज ही नहीं, आयुर्वेद व्यक्ति को स्वस्थ्य रखने पर भी विशेष ध्यान देता है। केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोना इलाज में आयुर्वेद की चार प्रमुख औषधियों को कोरोना के इलाज में प्रयोग करने की अनुमति दी है। विश्व व्यापी कोरोना संक्रमण के बीच आयुर्वेद को आगे लाना यह भी दर्शाता है कि हमारे शास्त्रों में स्वस्थ्य जीवन के लिए सदियों से बताई गई बातें आज भी प्रासंगिक हैं। कोरोना के बाद हमारे जीवन में आयुर्वेद का कितना महत्व होगा। केन्द्रीय आयुर्वेद शोध संस्थान (सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदा) के निदेशक वैद्य करतार सिंह धीमान ने इस बारे में विस्तृत बातचीत की।

आयुर्वेद इस बात को इंगित करता है कि यदि आप खुद को स्वस्थ्य कहते हैं तो एक बार फिर से विचार कीजिए क्या आप वास्तव में स्वस्थ्य है? यहां स्वस्थ्य होने का मतलब आपके आहार, व्यवहार और विचार से भी होता है। जिसके बीच में सभी को संतुलिन बनाना बेहद जरूरी हो जाएगा। इन तीनों का सामंजस्य आपके रोग प्रतिरोधक क्षमता या फिर इम्यूनिटी को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए उपधा यानि ईष्र्या से मन में उपजे मनोभाव तनाव की वजह बन सकते हैं, ईष्यालु, अभिमानी, लालच आदि व्याधियां ही बीमारी की वजह होती हैं। कोरोना ने हमें अपने शरीर की प्रकृति के बारे में जानने और प्रकृति के करीब जाने का मौका दिया है। ब्रह्म मुहूर्त उठने के फायदे और सूर्य प्रणाम सदियों से प्रसांगिक रहे हैं। आयुर्वेद शरीर की सभी इन्द्रियों, द्रव्यों, व्यवहार और आचार को प्रकृति के अनुसार समायोजित करने की बात करता है। यहां हर व्यक्ति विशेष के इलाज की अलग प्रक्रिया है। रोग प्रतिरोधक क्षमता की सही समय पर जानकारी के लिए भविष्य में आयुर्वेद में बताएं गए इम्यूनो मॉड्यूलर के प्रयोग पर अधिक बढ़ेगा। इसमें व्यक्ति के शरीर की प्रकृति के आधार पर रसायन दिया जा सकेगा, इसके लिए साल में एक से दो बार आयुर्वेद नियमित स्वास्थ्य जांच कराया जा सकेगा। इस तरह के चेकअपन के बाद उम्र के आधार पर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इम्यूनो मॉड्यूलर दिया जा सकता है। रेस्ट्रां में खाना, जंक फूड को सेवन और अधिक प्रीजरवेटिव का प्रयोग करने के नुकसान को जल्द ही समझना होगा। 45 दिन से अधिक के लॉक डाउन ने लोगों को घर के खाने का महत्व बता दिया है, जिसे आगे भी जारी रखना होगा, कोरोना हमारे जीवन का हिस्सा रहेगा लेकिन यह हमें प्रभावित न करें, इसके लिए घर से निकलते समय संक्रमण के हर पहलू पर नजर रखनी होगी, साथ ही मुकाबला करने के लिए शरीर को भी मजबूत बनाना होगा। सभी की मूल व्याधियां अलग होती हैं, इसलिए योग आसान और पंचकर्म के माध्यम से बीमारी से सुरक्षित रहा जा सकता है। अश्वगंधा ब्रह्म रसायान, गुग्गल, पंचवटी आदि जड़ी बूटियां रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करके साधारण फ्लू और बीमारी से बचाती है, कोरोना के रहते हुए स्वस्थ्य रहने के लिए फिर प्रकृति की ओर लौटना होगा।
ऋतु संधि में जरूरी कराएं पंचकर्म
बीमारियां अकसर शरीर में ऋतु परिवर्तन के समय ही हमला करती हैं, जिसका सीधा आश्य है कि बीमारियों से लड़ने के लिए हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत नहीं है। इसके लिए समय समय पर शरीर से विषैले टॉक्सिन का बाहर निकना जरूरी है। ऋतु परिवर्तन के समय साल में दो बार अपनाई गई पंचकर्म थेरेपी किसी भी मौसम परिवर्तन की बीमारी के साथ ही आपको स्वस्थ्य रखने में बेहर कारगर साबित हो सकती है। 12 से 13 दिन के एक बार के पंचकर्म का पूरा कोर्स करना होता है, पंचकर्म के इस समय के बीच बताई गए जीवन मूल्यों का ही पालन करना होता है। अनियंत्रित आहार और नकारात्मक विचार के अलावा घर में रहने की कई तरह की प्राकृतिक दशाएं शरीर में विषैले पद्धार्थों को बढ़ा देती हैं, इसमें अधिक देर तक एसी रहना, संरक्षित खाद्य पद्धार्थों का अधिक सेवन करना, फ्रिज का ठंडा पानी पीना और देर तक सो कर उठना आदि अहम वजह हैं। मजबूत रहना मतलब ऐसी सभी आदतों पर नियंत्रण करना जो विषैले तत्वों की पोषक हो सकती हैं। मानसिक अवस्था का भी इसमें अहम योगदान होता है, इसलिए सबसे पहले पंचकर्म के साथ ही योग व ध्यान को नियमित दिनचर्या में शामिल करने के लिए अवश्य कहा जाता है। जो मन और विचार के साथ ही कर्म में भी सामंजस्य बनाने में कारगर है।

कुछ पेय जो रखेंगे आपको मजबूत
बैचलर इन आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी आयुर्वेदाचार्य (डिवाइन स्कूल और आयुर्वेदाचार्या ऋषिकेश) डॉ. विभा शर्मा कहती हैं कि कुछ विशेष तरह के ड्रिंक आसानी से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखने में अहम हो सकते हैं। सदियों से यह माना जाता है कि तांबे के बर्तन में रात भर जल भरकर रखने से उसके सेवन से खून में आयरन की कमी देर होती है। इसको एक अन्य दूसरे विकल्प के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए तांबे के बर्तन में नीम की चार से पांच पत्तियां डाल कर पांच से छह घंटे के लिए रख दें, इस द्रव्य में शहद या हल्का नमक मिलाकर सुबह उठने के बाद नियमित दैनिक क्रिया कर्म निपटाने के बाद सेवन किया जा सकता है। पानी में तुलसी के पत्ते उबाल पर तैयार द्रव्य का सेवन अपच को दूर करता है। गिलोय, अश्वगंधा और दालचीनी का प्रयोग बीमार होने की नौबत ही नहीं आने देगा।

आयुर्वेद में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय
– खाने में अधिक मात्रा में हल्दी, जीरा, धनिया और लहसून का प्रयोग करें
– सुबह दस ग्राम यानि एक चम्मच च्यवनप्राश का प्रयोग करें, डायबिटिज के मरीज शुगर फ्री च्यवनप्राश लें
– गोल्डन मिल्क, एक गिलास दूध में आधा चम्मच हल्की मिलाकर सोने से पहले इसका सेवन करें
– काढ़ा का प्रयोग सुबह शाम करें, जिसमें दालचीनी, गुड़, अदरक और काली मिर्च उबाल कर बनाया गया हो
– सुबह शाम नाक के दोनों छिद्रों में सरसों या नारियल के तेल की दो बूंदें डालें, इसके प्रतिर्माश नाश्या कहा जाता है।
– एक चम्मच तिल या नारियल के तेल को मुंह में रखें, इसे पीना नहीं है, गरम पानी के साथ मुंह में चारों ओर घुमाएं फिर थूक दें, यह एक तरह के माउथ फे्रशनर का काम करता है।
– सूखी खांसी या गले में खराश हो तो गरम पानी में पुदीने की दो या चार पत्तियां और अजवाइन उबालें, इसकी भांप दिन में एक बार नाक से लें।
– लौंग के पाउडर में शहर मिलाकर, इसका दिन में दो या तीन बार सेवन करें, यह गले में खराश को दूर करेगा।
नोट- सभी उपाय सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेदा द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के अनुसार

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