नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार से चार सप्ताह के भीतर थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों को इलाज उपलब्ध कराने के लिए दिशानिर्देश यानि कि गाइडलाइन तैयार करने को कहा है। थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है जिसके कारण आक्सीजन का समुचित ढंग से प्रवाह नहीं हो पाता और लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इसके शरीर पर व्यापक प्रभाव होते हैं जैसे कि अस्थि विकृति, और कुछ मामलों में दिल की बीमारियां भी हो जाती हैं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की एक पीठ ने केन्द्र से चार सप्ताह के भीतर थैलेसीमिया से पीडि़त मरीजों को इलाज उपलब्ध कराने के लिए अपेक्षित दिशा-निर्देश दाखिल करने के लिए कहा। पीठ ने जनहित याचिका की अगली सुनवाई की तिथि 12 मार्च तय की। न्यायालय ने रीपक कंसल द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए यह निर्देश जारी किया। याचिका में दावा किया गया है कि इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और थैलेसीमिया से पीडित लोगों को नियमित रूप से रक्त चढाने की जरूरत होती है।
जनहित याचिका में कहा गया है कि भारत को थैलेसीमिया की राजधानी समझा जा सकता है जहां हर वर्ष लगभग दस हजार बच्चों का जन्म इस जानलेवा बीमारी के साथ हो रहा है। इसमें कहा गया है कि इस तरह के 50 प्रतिशत बच्चों की इलाज के अभाव में 20 वर्ष की उम्र से पहले ही मौत हो जाती है। इससे पूर्व केन्द्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि इस तरह के रोगियों की देखभाल को प्राथमिकता दिये जाने के लिए राज्य सरकारों को कोई परामर्श जारी करना संभव नहीं है।
सोर्स: भाषा