नई दिल्ली: तीन साल की बेबी प्रत्याशा को चिकित्शको ने नई जिंदगी दी, खून बिना मिले भी किडनी प्रत्यारोपण का फैसला लिया गया और बच्ची पूरी तरह ठीक हो गयी, दरअसल प्रत्याशा जन्म से ही रिफ्लेक्स नेफ्रोपैथी बीमारी से पीड़ित थी, तीन साल की उम्र तक आते आते उसकी हालत इतनी ख़राब हो गयी कि प्रत्यारोपण ही एक मात्र विकल्प था. लेकिन परिजनों के खून से प्रत्याशा का खून मैच नहीं कर कर रहा था इसलिए परिजन परेशान थे, बिना खून मिले होने वाली सर्जरी के खतरों के बावजूद प्रत्याशा का किडनी प्रत्यारोपण किया गया और वह पूरी तरह सफल रहा।
मेदांता के पीडिएट्रिक्स नेफ्रोलॉजिस्ट डॉक्टर सिद्धार्थ सेठी ने कहा कि जन्म के एक महीने बाद ही प्रत्याशा में रीफ्लैक्स नेफ्रोपैथी की बीमारी का पता चल गया था। आमतौर पर जब यूरिनरी ब्लैडर फूल होता है तो पेशाब अपने आप बाहर आने लगता है. लेकिन बच्ची के केस में पेशाब बाहर आने कि जगह वापस किडनी कि ओर ही मुड़ जा रहा रहा था, इसे पेशाब का विपरीत दिशा में प्रवाह भी कहा जाता है, लम्बे समय तक इस प्रक्रिया के दोहराये जाने की वजह से बच्ची कि किडनी पर असर पड़ा, ओर किडनी खराब होने लगी. कैडेवर डोनर से किडनी मिलने की उम्मीद थी, वो संभव नहीं हो हुआ। स्वैप ट्रांसप्लांट के लिए भी कोशिश की, छह महीन के इंतजार के बाद भी सफलता नहीं मिली। मां किडनी देने के लिए तैयार तो थी, लेकिन ब्लड ग्रुप नहीं मिल रहा था। आखिरकार डॉक्टर्स ने बिना खुन मिले ही प्रत्यारोपण का निर्णय लिया, डॉक्टर्स ने कहा कि देश में पहली बार 2014 में मेदांता अस्पताल में ही 12 साल के बच्चे का मिस मैच किडनी प्रत्यारोपण किया था, इसलिए तमाम चुनौती होने से बाद भी बच्ची की किडनी बदलने का फैसला लिया गया
डॉक्टर सेठी ने कहा कि मिस मैच प्रत्यारोपण में शरीर द्वारा किडनी के अस्वीकार करने का खतरा बहुत अधिक रहता है, जिसे हाइपर एक्यूट रिजेक्शन कहा जाता है. रिजेक्शन को कम करने के लिए ओर बच्ची के ब्लड से एंटीबॉडी कम करने के लिए इम्यूनोएडजॉर्प्शन कॉलम यूज करने के लिए प्रोटोकॉल तैयार किया, इसमें दो सीटिंग की गई, जिससे बच्ची के एंटीबॉडी कम करने उस लेवल तक पहुंचाया गया जहां से सर्जरी की जा सके। इसके बाद सर्जरी की गई। अगले 24 घंटे बहुत चुनौती पूर्ण थे. लेकिन ज्यों ज्यों समय बीतता गया रीजेक्शन का खतरा कम हो गया। 5 अप्रैल को सर्जरी की गई थी, दो महीने बाद अब बच्ची पूरी तरह से फिट है। डॉक्टर प्रसून घोष ने कहा कि पेशाब के थैली के परेशानी धीरे धीरे कम हो जाएगी. फिलहाल कैथेटर यूज करके यूरिन निकाला जा रहा है। उन्होंने कहा कि सर्जरी के बाद बच्ची का ग्राफ्ट और किडनी नॉर्मल काम कर रही है। उन्होंने दावा किया कि देश में इम्यूनोएडजॉर्प्शन प्रोटोकॉल एक छोटी बच्ची में अपनाया गया
है।
चिकित्स्को का शुक्रिया, बेटी ठीक हो गयी:
मूल रूप से उड़ीसा के संग्राम केसरी मलिक और दीपाली मलिक ने कहा कि जब हमने बीमारी के बारे में सुना तो हम डर गए थे, ऊपर से ब्लड ग्रुप भी मैच नहीं हो रहा था। जब डॉक्टर ने मिस मैच प्रत्यारोपण कि बात कही तो हम और डर गए, लेकिन मुझे बेटी चाहिए था इसलिए हमने डॉक्टर की बात मानी और आज मेरी बेटी मेरा पास है।