नई दिल्ली।
गर्दन के आसपास यदि काला घेरा उभर रहा है, या फिर गर्दन के पीछे का हिस्सा अपेक्षाकृत मोटा है तो यह मधुमेह होने के लक्षण हो सकते हैं। इसके अलावा डबल चिन, कमर का मोटा होना मधुमेह के नये बायोमार्कर माने गए हैं। वर्ष 2025 तक भारत मधुमेह की राजधानी न बनें, इसके लिए जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। दिल्ली डायबिटिज एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार अकेले राजधानी में इस समय18 लाख लोग मधुमेह के शिकार हंै,और इनते ही लोग मधुमेह के करीब हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं। कुल मरीजों में 30 प्रतिशत बच्चे टाइप टू मधुमेह के शिकार हैं।
इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के इंडोक्रायनोलॉजिस्ट डॉ. एस के बांगनू ने बताया कि मधुमेह से बचने के लिए केवल रक्त में शर्करा की जांच ही जरूरी नहीं हैं। अधिकतर लोग जब फास्टिंग पीपी जांच कराते हैं जबकि शर्करा का स्तर अनियंत्रित हो जाता है। मधुमेह मरीजों में बच्चों की हिस्सेदारी बढ़ी है, 16 से 18 साल के 30 प्रतिशत स्कूली बच्चे प्री डायबिटिक मेटाबॉलिक सिंड्रोम से पीड़ित हैं, जिन्हें अगले 5 से 6 साल के बीच मधुमेह होना निश्चित है। इन बच्चों की अनियंत्रित जीवन शैली को नियंत्रित करना जरूरी है। स्वाश्रित एनजीओ के सर्वे का हवाला देते हुए मनोवैज्ञानिक डॉ. भावना बर्मी ने बताया कि एनसीआर के नामी 90 स्कूलों जंक फूड के बिक्री देखी गई। 50 प्रतिशत बच्चें सप्ताह में केवल एक बार दाल खाते हैं। 70 प्रतिशत बच्चों के टिफिन में पराठा व पास्ता देखा गया। 75 प्रतिशत बच्चें सप्ताह में एक घंटे भी व्यायाम नहीं करते हैं।
बीमार हो रहा है बचपन
-67 फीसदी बच्चे सप्ताह भर में 3 लीटर से भी कम पानी पीते हैं।
-40 मिनट का व्यायाम ही फुला देता है 70 बच्चों की सांस
-70 फीसदी बच्चे क्रानिक फैटिग सिंड्रोम के शिकार, जिसमें एनर्जी स्तर तेजी से नीचे गिरता है।
-55 प्रतिशत बच्चे 10 से 15 मिनट तक भी नियकित रूप से नहीं टहलते
-40 प्रतिशत बच्चे स्कूल के टिफिन में पराठा, बर्गन व चाऊमीन ले जाना पसंद करते हैं।
नोट- सर्वेक्षण में एनसीआर के 15 स्कूलों के 7000 बच्चों को शामिल किया गया
क्या है बचाव
-15 से पहले तक बीएमआई 23 से ऊपर नहीं होना चाहिए
-महिलाओं में 18 के बाद और पुरूषों में 20 के बाद वजन बढ़ना भी है खतरा
-पेट का बाहर निकलना, जिसे सेंट्रल ओबेसिटी भी कहते हैं, भी है मधुमेह का प्रमुख लक्षण