गर्भपात की समयावधि को लेकर छिड़ी बहस

नई दिल्ली,
गर्भपात की अवधि कोे लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है, बांबे हाईकोर्ट ने बीस हफ्ते की अवधि के बाद भी गर्भपात की अनुमति दी है, वहीं दूसरी तरफ कोलकाता हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में 28 हफ्ते के गर्भधारण के लिए महिला ने गर्भपात की अनुमति मांगी है। बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि 20 हफ्ते या 140 दिन के गर्भ के बाद भी गर्भपात किया जा सकता है, यह उस स्थिति में निर्धारित होगा जबकि मां और बच्चे की जान को खतरा हो, ऐसी अवस्था में चिकित्सक को गर्भपात के लिए कोर्ट की अनुमति का इंतजार नहीं करना होगा। बांबे हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में गर्भपात की समयावधि को लेकर अपना रूख स्पष्ट किया है।
कोर्ट ने कहा कि एक रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिसनर महिला के स्वास्थ्य को देखते हुए बीस हफ्ते के गर्भधारण में एमटीपी या मेडिकल र्टमिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी कर सकता है, इसके लिए उसे कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं होगी। जबकि कोर्ट ने बीस हफ्ते के गर्भ को महिला की अनुमति के बाद भी गर्भपात कराने को मना किया है, जिसकी एक्ट में अनुमति नहीं दी गई है। न्यायाधीश एएस ओका और एमएस सोनक की बेंच वाली कोर्ट ने इस बावत आए एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी बीस हफ्ते तक के गर्भपात की अनुमति देता है यदि इसके अधिक पर महिला गर्भ को गिराना चाहे तो उसकी मानसिक और शारीरिक स्थिति की वह खुद जिम्मेदार होगी।

अब भी नहीं होता सुरक्षित गर्भपात
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि शहरी भारत में भी बड़ी संख्या में महिलाएं सुरक्षित गर्भपात के बार में नहीं जानती हैं, कई बार महिलाएं असुरक्षित गर्भपात का विकल्प अपनाती हैं जो बाद में उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाता है। एक अनुमान के अनुसार दस में केवल एक गर्भपात की सूचना सरकार को दी जाती है जबकि पिछले पांच साल में 56 हजार गर्भपात हुए हैं। एमटीपी एक्ट के अनुसार पंजीकृत चिकित्सक 12 हफ्ते तक के गर्भपात को करा सकते हैं बीस हफ्ते के गर्भपात के लिए दो मेडिकल प्रैक्टिसनर की अनुमति जरूरी बताई गई है। अनचाहे गर्भ को गिराने के लिए महिलाएं अकसर असुरक्षित साधन अपनाती हैं।

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