गाय के गले की नस से बच्ची के लिवर में पहुंचा खून

नई दिल्ली,
एक साल की बेबी हूर अपनी मां की गोद में लेटी मुस्कुरा रही थी, अपने पिछले सारे दर्द भुलाकर, गुरूग्राम के चिकित्सकों ने 14 घंटे चली जटिल सर्जरी कर उसे एक नया जीवन दिया था, तो उनकी उस मशक्कत से मां पिता के चेहरे पर तसल्ली के भाव। बेहतर इलाज मिलने की उम्मीद उन्हें सउदी अरब से दिल्ली ले आई, और चिकित्सकों की टीम ने भी हर चुनौती का सामना करते हुए बच्ची की मुस्कान लौटाई, जिसके लिए उन्हें लिवर में खून का प्रवाह सुचारू करने के लिए गाय के गले की नस का भी प्रयोग करना पड़ा।
बेबी हूर की बीमारी भी कोई साधारण बीमारी नहीं थी, सोलह हजार लोगों में किसी एक को जन्म से होने वाली बायलरी आर्टिरिसिया नाम की बीमारी से बच्चे का लिवर काम नहीं कर रहा था। उम्र बहुत कम होने के कारण चिकित्सक कोई बड़ा रिस्क नहीं ले सकते थे। तीन चरण में चलने वाली मोनोसेगमेंट सर्जरी में बेबी को लिवर के आंठवें हिस्से को प्रत्यारोपित किया गया। हूर जन्म से ही गंभीर पीलिया की शिकायत लेकर पैदा हुई, सउदी अरब के एक स्थानीय अस्पताल में बायलरी बायपास सर्जरी की गई, लेकिन उससे भी उसे राहत नहीं मिली, और ऑपरेशन पूरी तरह फेल रहा। अधिक बेहतर इलाज के लिए चिकित्सकों ने हूर को इंडिया भेज दिया, यहां गुरूग्राम के आर्टिमस अस्पताल में बच्ची को नया जीवन दिया। सर्जरी करने वाले चिकित्सक लिवर प्रत्यारोपण यूनिट के प्रमुख डॉ. गिरिराज बोरा ने बताया कि बेबी का वजन छह किलोग्राम से भी कम था, इतने वजन में सर्जरी करना काफी जटिल होता है, बेबी को मां का लिवर प्रत्यारोपित किया जाना था, लेकिन बच्ची की एक साल की उम्र के हिसाब से मां के लिवर का साइज काफी बड़ा था। इसके साथ ही सबसे अहम चुनौती थी कि लिवर की तरफ खून का प्रवाह करने वाली प्रमुख नस पोर्टल वेन थी ही नहीं, जिसे रिप्लेस करना सबसे बड़ी चुनौती थी, इसके लिए गाय की जगुलर वेन का प्रयोग किया, लिवर के साइज और खून की नसों के हिसाब से ग्राफ्टिंग करना चुनौती था। बेबी हूर के पिता सराह ने कहा कि बच्ची सर्जरी के बाद बहुत खुश और स्वस्थ्य है, यह हमारे लिए सबसे जरूरी था। सउदी में असफल ऑपरेशन के बाद उनकी उम्मीद टूट चुकी थी। गाय की गर्दन की नस की ग्राफ्टिंग को यह विश्व का पहला मामला बताया जा रहा है।

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