नई दिल्ली,
टाइप टू डायबिटिज के शिकार मरीजों को दी जाने वाली एक तरह की दवा क समूह से जनांगों में संक्रमण हो सकता है। इस बावत यूएस एफडीए ने रिपोर्ट जारी करते हुए इस समूह की दवा का सेवन कर रहे लोगों को सचेत किया है। एसजीएलटीटू समूह की इस दवा में पांच दवाओं के कांबिनेशन को शामिल किया गया है जो डायबिटिज के शिकार मरीजों में ब्लड शुगर का स्तर कम रखने के लिए दी जाती है। दरअसल इस दवा से किडनी से उत्सर्जित होने वाली ब्लड शुगर को खून में मिलने से रोकने की कोशिश की जाती है हालांकि कई बार तेजी से ब्लड शुगर बढ़ने की वजह से जनांगों में संक्रमण की शिकायत देखी गई। क्योंकि डायबिटिज में गैंगरीन संक्रमण सामान्य मरीजों के एवज में तेजी से बढ़ता है, इसलिए इसमें मरीज की जल्दी मौत भी हो जाती है। यूएस एफडीए ने एसजीएलटीटू समूह की दवा सेवन से अब तक एक की मौत और 11 अन्य मरीजों को गंभीर संक्रमण की बात कही है। एफडीए ने तुरंत प्रभाव से सभी डायबिटिज मरीजों के लिए इस समूह की दवा सेवन रोकने के लिए कहा है।
सोडियम- ग्लूकोज कांस्ट्रांसपोर्टर टृ दवा को डायट और विभिन्न लो शुगर स्तर की दवाओं के साथ डायबिटिज के टाइप टू मरीजों को दिया जाता है। जिसे सबसे पहले वर्ष 2013 में प्रमाणित किया गया। हालांकि इसे यूएसफडी का प्रमाणपत्र मिलने के बाद ही जॉनसन एंड जॉनसन, ईली लिलि और काक्स एंड जार्डिएंस दवा कंपनियों ने इसका निर्माण शुरू किया। लेकिन हाल ही में दवा के साइड इंफैक्टस के संदर्भ में यूएसएफडीए द्वारा किए गए एक अध्ययन में देखा गया कि इस समूह की दवा का इस्तेमाल करने वाले डायबिटिज के मरीजों में अति गंभीर और दुर्लभ फार्रनियर गैंगरीन का संक्रमण बढ़ रहा है। मार्च 2013 से अप्रैल 2018 तक फार्रनियर गैंगरीन के 12 मरीज देखे गए, जिसमें सात पुरूष और पांच महिलाएं शामिल हैं।
क्या है एसजीएलटीटू
एसजीएलटीटू के जरिए खून में ग्लूकोज की मात्रा कम किया जाता है, जिससे शरीर में ग्लूकोज के स्तर को कम किया जा सकें, ऐसा करते हुए कई बार खून मे जरूरत से अधिक यूरीन शरीर से बाहर निकलने लगता है, जिसकी वजह से यूरीन संक्रमण या जनांगों का संक्रमण बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों को जो पहले से किडनी के लिए किसी तरह की दवा का सेवन कर रहे हों,उन्हें एसजीएलटीटू नहीं दी जाती, ऐसा करने के पीछे अहम वजह यह है कि दवा की वजह से शरीर से निकलने वाला अतिरिक्त ग्लूकोज की मात्रा किडनी के सही ढंग से काम न करने की वजह से, किडनी से निकलने वाला ग्लूकोज दोनों मिलकल यूरीन में ग्लूकोज की मात्रा को कई गुना बढ़ा सकते हैं, जिससे मरीज को खतरा हो सकता है। यह स्थिति डायबिटिक कैटोएसिडोसिस कहलाती है। कई बार यह दवा हाइपोग्लाइसीमिया की वजह भी बनती है।