नई दिल्ली,
वर्ष 2030 तक टीबी मुक्त भारत के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तावित टीबी की नई ट्रूनेट जांच को स्वीकृत कर लिया गया है। यह जांच शरीर में टीबी बैक्टीरियम की सही स्थिति का पता लगाने के साथ ही इसका भी पता लगा सकेगी कि टीबी के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली रिफांम्सिन दवा के लिए मरीज के शरीर में एंटीरेस्टिटेंस तो नहीं बन रही है। मालूम हो कि टीबी के इलाज के लिए निर्धारित समय तक यदि दवाओं का सेवन नियमित नहीं किया जाता तो दवाओं के प्रति शरीर में एंटीरेस्टिटेंस बन जाती है। जिसे बिगड़ी हुई, एमडीआर या एक्सडीआर टीबी भी कहते हैं।
आईसीएमआर और द फाउंडेशन ऑफ इनोवेटिव न्यू डायग्नोसिस (एफआईएनडी) द्वारा किए गए मूल्यांकन के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी या तपेदिक जांच के लिए ट्रूनेट जांच की अनुशंसा की है। जिससे टीबी बैक्टीरियम की अधिक सटीक जांच संभव हो सकेगी। रैपिड मॉलीक्यूलर एस्से विभिन्न दवाओं के रेस्सिटेंस का भी पता लगा सकेगी, रिफांसिन को टीबी के इलाज के लिए फस्र्ट लाइन ट्रीटमेंट माना जाता है। लेकिन बच्चों और बुजुर्गो में अधिकतर दवा के प्रति रेस्सिटेंस देखा जाता है।
ट्रूनेट एस्से से एक घंटे से भी कम समय में जांच रिपोर्ट आ जाती है। बाकी जांच की तरह ही यह भी पोर्टबल बैटरी युक्त डिवाइस है, जिसे चालीस डिग्री के तापमान भी ऑपरेट किया जा सकता है। टीबी भारत सहित विश्व के कई देशों में बढ़ता हुई बीमारी है, वर्ष 2018 में टीबी के आधे से अधिक मरीजों में इसकी दवा के प्रति ही रेस्सिटेंस देखा गया, मतलब दवाओं ने टीबी बैक्टीरियम पर असर करना बंद कर लिया। इस स्थिति को देखते हुए ट्रूनेट को प्रस्तावित किया गया है, जिससे दवा के असर होने की स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। इसे ग्रामीण क्षेत्र के सामूदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में आसानी से जांच के लिए प्रयोग किया जा सकता है। ट्रूनेट जांच में रियल टाइम माइक्रो पॉलीमर्सी चेन रिएक्शन तकनीकि के आधार पर जांच की जाती है। आईसीएमआर के निदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भारत में अब टीबी जांच के लिए आधुनिक मॉलीक्यूलर जांच को प्रयोग किया जा सकेगा। अहम यह है कि यह साधारण टीबी, एमडीआर और एक्सडीआर टीबी का भी पता लगा सकेगी।