ताकि बुढ़ापा न बनें बोझ

नई दिल्ली: साकेत निवासी 60 वर्षीय विश्वमोहन शर्मा ने एक मल्टीनेशनल कंपनी से सेवानिवृति के चार साल पहले ही वीआरएस ले लिया। स्वैच्छिक सेवा निवृति लेने का मकसद यह नहीं था कि वह कहीं और सेवा देना चाहते थे या फिर उन्हें पैसों की जरूरत नहीं थी। दरअसल सेवा में रहते हुए विश्वमोहन लंबे समय तक टूर एंड ट्रैवल प्रबंधन का काम संभालते थे। अच्छा वेतन और जॉब सिक्योरिटी के कारण समय रहते वह सेहत की परेशानियों पर ध्यान नहीं दे पाए और सेवानिवृति से पहले ही उन्हें कई बीमारियों ने घेर लिया। कई दिनों तक फेफड़े की समस्या रहने के बाद उन्हें इलाज के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी। सफलता की अंधी दौड़ की यह कहानी युवाओं पर भी दोहराई जा सकती है। द ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी 2010 के आंकड़े कहते हैं कि आधुनिक दवा, उपकरण, जांच सुविधाएं और बीमारी के प्रति जागरूकता ने भारतीयों की जीवन दर बढ़ाई है। लेकिन बुढापे को पहले से कहीं अधिक बीमारियों ने घेरना शुरू कर दिया है। दिल का दौरा, डायबिटीज, आर्थराइटिस, सीओपीडी या सांस की बीमारियों का असर अब बढ़ गया है। बीमारियों की इस फौज से बचा जा सकता है, यदि समय रहते दिनचर्या पर ध्यान दिया जाएं और सेहतमंद रहने के लिए ईमानदारी बरती जाएं।
20 से 40 की उम्र गुजर जाती है यूं ही
नेशनल हार्ट सेंटर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. हबीबुल्लाह कहते हैं वर्ष 2030 तक ग्लोबल बर्डन और डिसीस में भारतीयों की भागीदारी और बढ़ेगी, बीते एक दशक में युवाओं की दिनचर्या में बढ़ा बदलाव आया है। जिसका असर आगामी दस साल में दिखने लग जाएगा। मैक्स बूपा हेल्थ केयर द्वारा कारपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 1500 युवाओं पर किए गए अध्ययन में यह खुलासा किया कि स्वास्थ्य बीमा होने के बाद भी केवल दो प्रतिशत युवा चार महीने में एक बार स्वास्थ्य की सामान्य जांच कराते हैं। कार्यक्षमता बढ़ाने और बेहतर मानव संसाधन के लिए हालांकि कई कंपनियों ने कर्मचारियों की नियमित स्वास्थ्य जांच की सुविधा शुरू की है। बावजूद इसके कारपोरेट सेक्टर में ही सबसे अधिक दिल और डायबिटीज के मरीजों की संख्या अधिक देखी गई है। एम्स के कम्यूनिटी मेडिसन विभाग के डॉ. एसके पांडव ने बताया कि अच्छा जीवन स्तर हासिल करने के लिए 20 से 40 की उम्र तक आज का युवा जी तोड़ कर मेहनत करता है। गलत दिनचर्या और अपौष्टिक आहार का कॉकटेल उन्हें 45 तक बीमार बनाने के लिए काफी है। 34 से 40 के बीच टाइप टू डायबिटीज के मरीजों की संख्या का बढ़ना इसका ही एक उदाहरण मात्र है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी वर्ष 2030 तक देश को मोटापे और डायबिटीज में नंबर वन की श्रेणी में आंकता है। इम्प्राइमस अस्पताल के आर्थोपेडिक्स डॉ. कौशल कांत मिश्रा कहते हैं कि उम्र की एक तय सीमा तक ही हड्डियों कैल्शियम बनता है, इसके बाद इसे संरक्षित करना पड़ता है। लेकिन शहरों में धूप से दूर हो रहे युवा कम उम्र में ही जोड़ों के दर्द का शिकार हो जाते हैं।

तनाव भी है बड़ी वजह
चिकित्सकों का एक बड़ा वर्ग तनाव को युवा वर्ग की लगभग सभी बीमारियों से जुड़ा मानता है। कहा जा सकता है कि तनाव और बीमारी का एक सर्किल काम करता है। इंस्टीट्यूट ऑफ हृयुमन बिहेव्यिर एंड एलायड साइंस के डॉ. ओमप्रकाश कहते हैं कि सामान्य 24 से 25 साल की उम्र में एक अच्छे ओहदे पर नौकरी हासिल करने वाला सामान्य स्वस्थ्य युवक 35 तक नशे का शिकार हो जाता है। हर दूसरा युवक इसे लाइफ स्टाइल से जुड़ी जरूरत मानता है। कभी शौक और दोस्तों के बीच की गई शराब की लत तनाव दूर करने का भी सहारा बनती है। जबकि शराब पीने से तनाव कम होता है इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं। मानसिक रोग पर किए गए अब तक शोध भी बताते हैं कि तनाव की वजह से जीवन की गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ता है। आत्महत्या के बढ़ने कारण में तनाव को ही पहली सीढ़ी माना गया है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के वार्षिक आंकड़ों के अनुसार हर साल देश में तनाव की वजह से एक लाख लोग आत्महत्या करते हैं, यह आंकड़ा विश्वभर में होने वाली कुल आत्महत्या का दस प्रतिशत है।

कम लेकिन बेहतर हो जिंदगी
द लांसेट में छपे लेख में पहली बार 187 देशों की लाइफ एक्सपेंटेंसी पर रिपोर्ट जारी की गई। जिसमें भारतीयों की जीवनदर में तो बढ़ोत्तरी देखी गई, लेकिन निराशाजनक बात यह है कि भारतीय स्वस्थ्य बुढ़ापे की जगह बीमार बुढ़ापा जी रहे हैं। वर्ष 1970 के मुकाबले भारतीय महिलाएं अब 18 साल अधिक जी रही हैं। पहले जीने का यह आंकड़ा 67 साल तक सीमित था, जबकि अब एक सामान्य महिला 78 से 80 साल तक जी रही है। जबकि पुरूषों में जिंदगी का सफर 10 से 15 साल बढ़ी है। जबकि वैश्विक जीवन दर में तीन साल की बढ़ोत्तरी हुई है। बीमारियों की बढ़ती संख्या की वजह से बढ़ती जीवन दर भी एक आदर्श समाज की तस्वीर प्रस्तुत नहीं करती। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख डॉ. नता मेताब्दे के अनुसार ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में बेहतर और सही समय पर इलाज उपलब्ध कराना अब भी भारत के लिए चुनौती है। बढ़ती उम्र में बेहतर स्वास्थ्य के लक्ष्य को हासिल करने की शुरूआत कम उम्र से ही करनी होगी। उच्च रक्तचाप और मोटापा इसके लिए साइलेंट किलर का काम कर रहे हैं। इसमें सिगरेट आग में घी डालने का काम करती है। विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि 80 प्रतिशत युवा मानते हैं कि उनकी दिनचर्या भविष्य में उनके लिए बीमारी की वजह बनेगी, बावजूद इसके वह इससे बचने के लिए समय नहीं निकाल पाते।
समय रहते अपनाएं कुछ उपाय
स्वास्थ्य बीमा है बेहतर लेकिन इसके लिए बीमार होने का इंतजार न करें। बड़ी कंपनियां अब भी केवल आईपीडी यानि है। महंगे उपकरण और रोबोटिक सर्जरी अब भी स्वास्थ्य बीमा के दायरे से बाहर हैं। इसके बचाव को ही बेहतर विकल्प कहा जा सकता है। हर दो से तीन महीने में स्वास्थ्य चेकअप के लिए समय जरूर निकाले। व्यायाम और डायट चार्ट को फॉलो करें। 40 मिनट व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करें।

सही समय पर अपनाएं पांच अच्छी आदतें
प्राथमिकताएं तय करें- एक बेहतर जीवन शैली के लिए हरदम सफलता के पीछे भागना जरूरी नहीं, अपने जीवन की प्राथमिकताओं की सूची तैयार करें, और उस पर खरे उतरने के लिए अपने क्षमताओं का आंकलन करें। अधिक महत्वकांक्षा भी एक समय बाद तनाव की वजह बन जाती है।
खुश रहने की कोशिश करें- दिल्ली लॉफिंग क्लब के उमेश वर्मा कहते हैं कि क्लब में आने वाले 79 प्रतिशत सीनियर सिटिजन पहले कभी उच्च रक्तचाप के शिकार थे। लेकिन दो से तीन महीने में उनकी सेहत में बदलाव देखा गया। बुजुर्गो में खुश रहने की इच्छा बढ़ी है वहीं युवा इससे दूर हो रहे हैं। अधिक पैसे के बीच खुशियों को ढुंढने की दुविधा उन्हें खुश नहीं रहने देती।
पौष्टिक आहार है जरूरी- पौष्टिक खाने को नजरअंदाज करने का सीधा मतलब भविष्य की बीमारियों के लिए खुद नींव खोदना है। खाने में हरी सब्जियां, फल, दूध और दही की जगह अब जंक फूड ने ले ली है। इसका असर मोटापे के रूप में दिखता है, जबकि फाइबर युक्त खाना लंबे समय तक स्वस्थ्य रहने की कुंजी है।
सामाजिकता निभाएं- समाज और परिवार का संपर्क एक तरह की सोशल मेडिसन का काम करता है। मेट्रो शहर में रह कर एकाकी जीवन जीने वाले युवा ही अकसर जल्दी नशे और मानसिक रोगों का शिकार होते हैं। घर से बाहर रहकर काम करना मजबूरी भी है तो समाज में अपनी भूमिका निभाई जा सकती है। अकेलपन तनाव को बढ़ाता है, जबकि
परेशानियां दूसरों से कहने पर इसे दूर किया जा सकता है।
समय प्रबंधन जरूरी- बेतरतीब जिंदगी उलझनें बढ़ाती है। जबकि समय प्रबंधन से मानसिक सुकुन हासिल हो सकता है। युवाओं में स्वास्थ्य जांच न करा पाने की अहम वजह समय का न होना ही देखी गई, जबकि माना गया है कि सूचीबद्ध ढंग से किए गए काम से व्यस्तता में भी हर काम को सलीके से किया जा सकता है।
बुढ़ापे की कुछ समस्याएं
82 प्रतिशत- कमर में दर्द
40 प्रतिशत- आर्थराइटिस
18 प्रतिशत- डायबिटीज
15 प्रतिशत – दिल की बीमारी
25 प्रतिशत- रेस्पेरेटरी समस्या
12 प्रतिशत- आंखों की कम रोशनी

कुछ अन्य तथ्य
-4 प्रतिशत बुजुर्गो का है स्वास्थ्य बीमा
-13 प्रतिशत बुजुर्ग खुद की पेंशन पर आश्रित
-14 प्रतिशत लेते हैं बीमारी के लिए फैमिली डॉक्टर का सहारा

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