नई दिल्ली
मई से जुलाई महीने के बीच बिहार में लीची की पैदावार बहुतायत में होती है। आसान और सर्वसुलभ लीची को बच्चों ने खाने का विकल्प बनाया और जिसकी वजह से हाईपोग्लाइसिन ए और फ्रूट आधारिक टॉक्सिन एमसीजीपी बढ़ने से बच्चे बीमार हुए। मुजफ्फरपुर में हर साल लगभग इन्हें दिनों में जेई का प्रकोप चरम पर होता है। इसकी वजह जानने के लिए चिकित्सा जगत की अंर्तराष्ट्रीय शोध पत्रिका लांसेट ने वर्ष 2014 में अध्ययन किया। इसमें मई 26 से जुलाई 17 के बीच दो प्रमुख अस्पताल में भर्ती होने वाले जेई या चकमी के 390 मरीजों पर शोध किया, सभी की उम्र 15 साल से कम थी।
शोधपत्र के अनुसार अध्ययन दौरान ही 390 में से 144 बच्चों की मौत हो गई। पंजीकृत बच्चों के क्लीनिक जांच (खून के नमूने, सेरेब्रल फ्लूड यानि दिमाग का पानी और यूरीन) के साथ ही एनवायरमेंटल प्रमाण (प्राकृतिक साक्ष्य जैसे बच्चे ने क्या खाया कब खाया) आदि का अध्ययन किया गया। अस्पताल में भर्ती होने के समय 327 में से 204 बच्चों का ब्लड ग्लूकोज लेवल बहुत कम था। प्राकृतिक साक्ष्य प्रमाण और क्लीनिकल जांच में देखा गया कि जिन बच्चों ने लीची खाने के बाद शाम का खाना नहीं खाया, उनके खून में तेजी से ग्लूकोज का स्तर अनियंत्रित देखा गया, हालांकि शोध में लीची की पैदावार के समय प्रयोग किए जाने वाले पेस्टीसाइड्स या कीटनाशकों को जिम्मेदार नहीं माना गया। खाली पेट लीची खाने से हुआ हाइपोग्लाइसिमिक और फ्रूट टॉक्सिन को बच्चों की बीमारी की प्रमुख वजह माना। हालांकि अध्ययन के परिणाम देखते हुए चिकित्सकों ने बच्चों से खाली पेट लीची न खाने और यदि लीची खा भी ली है तो शाम का खाना स्किप न करने की सलाह दी थी।