नई दिल्ली
दस साल के सम्यक की उम्र उस समय छह महीने की थी, जबकि माता पिता को पहली बार पता चला कि सम्यक को थैलेसीमिया ( thalassemia) की बीमारी है। थैलेसीमिया एक तरह का आनुवांशिक रक्त विकार है, जिसके मरीज के शरीर में रक्त नहीं बनता है, और हीमोग्लोबिन कम होने की स्थिति बनी रहती है। लाल रक्त कणिकाओं की कमी होने की वजह से मरीज में कमजोरी व पीलिया बना रहता है। इसका एक ही उपाय है कि मरीज को हर महीने ब्लड चढ़ाया किया जाएं, सम्यक दह महीने की अवस्था से इसी तरह के इलाज पर निर्भर था। नासिक के एचसीजी अस्पताल के चिकित्सों ने सम्यक पर हैप्लोआईडेंटिकल या हाफ मैच स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण किया, जिसके बेहतर परिणाम मिले और अब सम्यक को हर महीने ब्लड प्रत्यारोपण नहीं करवाना पड़ता है।
जानकारी के अनुसार सम्यक को एक गंभीर श्रेणी का थैलेसीमिया था, छह महीने की अवस्था में इस बीमारी के बारे में पता चला। छह महीने से दस साल की अवस्था तक सम्यक को हर महीने खून चढ़ाना पड़ता था। एचसीजी मानवता कैंसर सेंटर के डॉ़ प्रत्येश दि्वेदी ने सम्यक के इलाज के लिए हैप्लोआइडेंटिकल स्टेम सेल्स का प्रयोग किया, जिसे हाफ मैच स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण भी कहा जाता है। नवंबर वर्ष 2022 में सम्यक का स्टेम सेल्स से इलाज शुरू किया गया, जिसमें सम्यक के पिता ने स्टेम सेल्स डोनेट किए। हाफ मैच स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण वह अवस्था होती है जिसमें कि स्टेम सेल्स डोनर के दानकार्ता से सेल्स मैच नहीं करने पर भी प्रत्यारोपण को अपनाया जाता है। बाद में यह प्रयोग सफल रहा, और सम्यक किया गया हाफ मैच स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण नार्थ महाराष्ट्र का ऐसा पहला सफल प्रत्यारोपण माना गया। स्टेम सेल्स के सफल प्रत्यारोपण से अब सम्यक को हर महीने रक्त नहीं चढ़ाना पड़ता है। हर वर्ष आठ मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस (World thalassemia day) के रूप में मनाया जाता है, जिससे मरीजों को इस रक्त विकार के बारे में जानकारी दी जा सके। यह एक तरह का जेनेटिक रक्त विकास है, जिससे विश्व भर में लाखों बच्चे प्रभावित होते हैं।