दिल के मरीजों को ऊंची इमारतों पर रहने से बचना चाहिए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि नीचले माले पर रहने वाले दिल के मरीजों में ऊंचे माले पर रहने वाले दिल के मरीजों की अपेक्षा हृदयघात का खतरा कम देखा गया, केवल हृदयघाता खतरा ही नहीं, इन मरीजों को आपात स्थिति में मिलने वाली मदद में लगने वाला समय भी नीचले माले की अपेक्षाकृत अधिक देखा गया। बचाव के लिए आईएमए ने दिल के मरीजों को ऊंची इमारते के टॉप फ्लोर पर न रहने की सलाह दी है।
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया और आईएमए के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. केके अग्रवाल ने बताया कि उपरी मंजिल पर रहने वाली मरीजों में हृदयघात की वजह से केवल 2.6 प्रतिशत लोगों की जान बचाई जा रही, जबकि पहली मंजिल पर रहने वाले 4.2 प्रतिशत लोगों को सही समय पर इलाज मिल सका। हृदयघात के लिए जारी की गई हेल्पलाइन नंबर पर किए गए 5998 फोन कॉल के आधार पर सर्वेक्षण किया गया। जिसमें पाया गया कि आपातस्थिति में उन ही मरीजों को सही समय पर इलाज दिया जा सका जो पहली मंजिल पर रहते हैं। एक अनुमान के मुताबित पहली मंजिल पर रहने वाली मरीज तक पहुंचने में तीन मिनट का समय लगा, जबकि चौथी और पांचवी मंजिल तक इलाज देने के लिए पांच मिनट से अधिक समय लग गया। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि यदि मजबूरी वश ऊंचे माले पर मकान लेना भी पड़े तो घर के किसी सदस्य को सीपीआर दस तकनीक अवश्य सीख लेनी चाहिए, जिससे आपात स्थिति में चिकित्सक के पहुंचने से पहले ही मरीज को इलाज दिया जा सके। मालूम हो कि 9958771177 हेल्पलाइन की मदद से हृदयघात के मरीजों को आपातस्थिति में इलाज दिया जाता है। हेल्पलाइन तीन साल पहले शुरू की गई थी।
हृदयघात के कुछ आंकड़े
– हर साल देश में 24000 दिल के दौरे की वजह से जान गंवा देते हैं
– सही समय पर इलाज मिलने पर इनमें से 50 प्रतिशत मरीजों की जान बचाई जा सकती है
– सीपीआर दस की मदद से हृदयघात के मरीजों की सांस दस मिनट तक रोकी जा सकती है
– पीठ के बल पसलियों के बीच दवाबा डालने की प्रक्रिया को सीपीआर दस कहते हैं, इसे 20 से 25 बार दोहरना चाहिए