नई दिल्ली: प्रदूषण के बढ़ते खतरे का असर अब तक फेफड़े तक ही देखा जाता था, लेकिन हाल में हुए अध्ययन में इसे दिल के लिए भी घातक बताया गया है। प्रदूषण का फेफड़े पर प्राथमिक असर संकुचन के रूप में दिखता है, जबकि लंबे समय तक यही अवस्था दिल में भी खून की आपूर्ति को बाधित करती है। पांच से छह साल तक लगातार वायु प्रदूषण का संपर्क का असर दिल को बीमार करने के अलावा औसम कम उम्र, तनाव और सांस की बीमारी के खतरे को दस गुना बढ़ा देता है।
एम्स के निदेशक डॉ. रनदीप गुलेरिया ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट में दिल्ली को विश्व के दस सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया है। प्रदूषण का अब तक का सीधा असर फेफड़े के रूप में देखा जाता था, लेकिन लंबे समय तक वायु प्रदूषण का संपर्क दिल को भी बीमार करता है। एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में 17 साल से कम उम्र के 19 प्रतिशत बच्चों के फेफड़े स्वस्थ्य नहीं है, जबकि 12 प्रतिशत बुजूर्ग के बीमार फेफड़े दिल पर भी असर डाल रहे है। प्रदूषण की वजह से फेफड़े का संकुचन दिल में एस्थेलेरोस्कोसिस का कारण बनता है, जिसमें दिल की धड़कन सामान्य से तेज चलती है। फेफड़ों की संकुचन बढ़ाने वाले एसपीएम 2.5 के कण दिल की धमनियों में भी असर करते हैं, जिसके कारण दिल का रक्तप्रवाह सामान्य से बेहद कम हो जाता है।
सेहत पर प्रदूषण का असर जानने के लिए एम्स के पल्मोनरी विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला कि दिल्ली वासी रोजाना सामान्य ग्रामीण क्षेत्र की अपेक्षा 1.7 गुना अधिक वायु प्रदूषण सांस के जरिए ले रहे हैं। सफदरजंग अस्पताल के श्वसनतंत्र विभाग के डॉ. एमके सेन ने बताया प्रदूषण की वजह से एलर्जी का असर भी बढ़ रहा है, यदि सामान्य सांस लेने में दिक्कत, सफाई करते समय घुटन या फिर परफ्यूम से छींक आए तो पीक फ्लो मीटर से सामान्य जांच की जा सकती है यह अस्थमा की शुरूआत हो सकती है। आप जहां रहते या जिस जगह पर आपका संपर्क अधिक रहता है वहां की एक्यूआई या एअर क्वालिटी इंडेक्स भी रोज जांचनी चाहिए। जो जीरो से शुरू होकर 500 तक देखी जाती है। 101-200 के बीच के एक्यूआई को सामान्य और 201-300 के बीच की एअर क्वालिटी को खराब और 301 से 400 के बीच की एक्यूआई को सबसे खराब एअर कहा जाता है।