नई दिल्ली: खुलेआम गर्भपात की दवा बिकना और इस पर कोई पांबदी नहीं होने की वजह से पूरे देश में गुपचुप तरीके से रोज गर्भपात किए जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में हर साल एक करोडे़ महिलाएं गुपचुप तरीके से ही गर्भपात करा रही है और सरकार के पास इसे रोकने का कोई समुचित तरीका नहीं है। इससे परिवार नियोजन की जरूरतों से निपटने में सरकार की नाकामी का पता चलता है।
जिलास्तरीय घरेलू एवं फैसिलिटी सर्वेक्षण 2007-2008 के मुताबिक, परिवार नियोजन कार्यक्रम नसबंदी को बढ़ावा देता है जिससे पांच में से एक महिला को देश में गर्भनिरोध गोलियों की जरूरत रहती है। गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से अनचाहे गर्भ से बचने की प्रक्रिया से देश में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे चली गई है। यह वह स्तर है जहां जहां न ही आबादी बढ़ेगी और न ही घटेगी। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुमान के मुताबिक, देश की प्रजनन दर 2.3 है लेकिन यदि महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों दी जाए और सुरक्षित गर्भपात का आश्वासन दिया जाए तो प्रजनन दर 1.9 तक गिर सकती है।
यही समान दर अमेरिका, आस्ट्रेलिया और स्वीडन में भी है। एक गैर सरकारी संगठन ‘द पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, ‘‘यदि सरकार अनचाहे गर्भ को रोकने पर ध्यान देती है और महिलाओं को सही फैसला लेने में सशक्त करें तो देश की आबादी गिरना शुरू हो जाएगी।’’ पूनम ने बताया, ‘‘तीन लड़कियों के बाद मेरे परिवार को लड़का चाहिए था। एक पड़ोसी ने गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जिसके बाद मैंने माला-डी लेना शुरू कर दिया।’’ वह अवांछित गर्भ के लिए लगातार गोलियां ले रही थीं जिससे उसे पेट और पीठ में दर्द, भारी मात्रा में खून बहना,
बुखार, उल्टी आना जैसेी दिक्कतें हो रही थीं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, देश में अनुमानित रूप से दो से पांच फीसदी महिलाओं को अपूर्ण गर्भपात को पूरा करने और रक्त के बहाव को नियंत्रित करने के लिए शल्य चिकित्सा की जरूरत है। फोर्टिस अस्पतल की डॉक्टर सुनीता मित्तल ने कहा,
‘‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम 1971 में पारित होने
की वजह से देश में सर्जिकल गर्भपात को वैधता प्राप्त है। गर्भपात से महिलाओं की जान को जखिम रहता है।’’ मौजूदा समय में भारतीयों के पास गर्भनिरोधक तीरकों के पांच तरीके हैं जिसमें कंडोम, ओरल पिल्स, इंट्रा-यूट्रेस उपकरण, पुरूष एवं महिला नसबंदी शामिल हैं। पूनम मुत्तेरजा कहती हैं, ‘‘शोध से पता चला है कि गर्भपात के हर नए विकल्प से आधुनिक गर्भनिरोधक दर आठ से 12 फीसदी बढ़ेगी। देश में गर्भनिरोधक दर 52.4 फीसदी है इसका मतलब है कि आधी से अधिक भारतीय महिलाएं और उनके पार्टनर मौजूदा समय में गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल कर रेह हैं जिससे यह दर बढ़ने की
संभावना है।
वर्ष 2002 में मिफेप्रिस्टोन और मिसोप्रोस्टोल के कानून इस्तेमाल तक देश में छह फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 31 फीसदी बड़े सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध नहीं करा रहे थे लेकिन अब महिलाएं गुपचुप तरीके से गर्भनिरोधक गोलियां ले रही हैं।