नये कानून से मजबूत होगें सेरोगेट मां के अधिकार

नई दिल्ली: किराए की कोख की बढ़ते मामले को देखते हुए सेरोगेसी के नये एआरटी (असिसटेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी रेगुलेशन बिल) 2010 का अंतिम प्रारूप तैयार कर लिया गया है। नये बिल के बाद किराए की कोख देने वाली मां के अधिकार मजबूत किए जाएगें, जिसमें उनका निर्धारित शुल्क और बच्चे को जन्म देने के बाद एक साल तक स्वास्थ्य की देखभाल जैसी जरूरी पहलूओं को शामिल किया गया है।

अंतराष्ट्रीय फर्टिलिटी सेंटर की प्रमुख डॉ. रीता बक्शी ने बताया कि नियम और कानून न होने की वजह नौ महीने बच्चे को कोख में रखने वाली सरोगेट मां के अधिकारों को नजरअंदाज किया जाता है। जबकि नये कानून में यह व्यवस्था कि गई कि ऐसी मां को निर्धारित धनराशि दी जाएं, इसके साथ ही प्रसव के बाद एक साल तक उसके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाए। आईसीएमआर में रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड न्यूट्रिशियन के प्रमुख व ड्राफ्ट बिल के सदस्य डॉ. आरएस शर्मा ने बताया कि नये कानून से किराए की कोख के व्यवसायिकरण पर रोक लगेगी, इसके लिए आईसीएमआर की मदद से राष्ट्रीय स्तरीय रजिस्ट्री कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। जिसमें सेरोगेट मां बनने वाली सभी महिलाओं का पंजीकरण जरूरी होगा।

नये बिल में 21 से 35 वर्ष की केवल भारतीय महिला को ही किराए सेरोगेट मां बनने का अधिकार दिया गया है। किसी भी महिला को अपने या सेरोगेसी के बाद केवल पांच बच्चों को जन्म देने का अधिकार होगा, भारतीय होने पर पर केवल पत्नी पक्ष के लोग जैसे बहन, मां या अन्य महिला रिश्तेदार ही अपनी कोख किराए पर दे सकेगी। विदेश में रहने वाले दम्पति यदि भारत में संतानसुख लेना चाहेंगे तो उन्हें यहां की नागरिकता हासिल करनी होगी। नये बिल में बच्चे के जन्मप्रमाण पत्र व अन्य कानूनी अधिकार को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। हालांकि बिल के कानूनी पक्ष के लिए इसे विधि आयोग को प्रस्तुत किया गया है।

बढ़ेंगी औपचारिकता
-सेरोगेट मां को बच्चा लेने वाले दम्पति के स्वास्थ्य, आर्थिक व पारिवारिक स्थिति जानने का अधिकार होगा
-किराए की कोख की सुविधा देने वाले क्लीनिक व नर्सिंग होम को लेनी होगी कानूनी मान्यता
-ऐसे क्लीनिक दूतावास के हस्तक्षेप बिना किराए की कोख से विदेशी महिला या पुरूष को संतानसुख नहीं दे पाएंगे।
-किराए की कोख से पैदा हुए बच्चे को एक महीने के अंदर गोद लेने व जन्म प्रमाणपत्र की औपचारिकता पूरी करनी होगी

बेहतर नहीं हैं अभी हालात
-किराए पर कोख देने वाली 78 प्रतिशत की उम्र 26-30 के बीच
-78 प्रतिशत सेरोगेट मां गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापत करने वालीं
-90 प्रतिशत महिलाओं नहीं पता होता डॉक्टर और दम्पति के बीच क्या हुआ समझौता
-मां बनने वाले 69 प्रतिशत सेरोगेट महिलाओं को नहीं मिलता सही खाना पीना
-60 प्रतिशत सेरोगेट ने माना कि नियमित जांच के बहाने हुई बच्चे के लिंग की जांच
-चार प्रतिशत सेरोगेट ने माना गर्भधारण के बाद उन्हें हुआ नवजात से आत्मीय लगाव
नोट- सेरोगेट मां पर सेंटर फॉर सोशल रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट के आंकड़े

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