गर्भवती महिला के प्रसव के ऐन वक्त पर अकसर यह सवाल किया जाता है कि या मां बच सकती है या फिर बच्चा। इसके लिए प्रसव के लिए सी सेक्शन या सर्जरी करनी पड़ती है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के ताजा अध्ययन में देश के प्रमुख निजी और सरकारी अस्पतलों में 15 अधिक महंगी गैर जरूरी सर्जरी की जा रही हैं। जिसमें सर्जरी से नवजात का जन्म भी शामिल है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे लेख में इस बात का खुलासा हुआ है। पीएचएफआई द्वारा किए अध्ययन के अनुसार प्रसव के सी सेक्शन के लिए ढाई हजार से 40 हजार रुपए तक का शुल्क लिया जाता है। अस्पतालों की विभिन्न 80 मदों पर लिए जाने वाले इस शुल्क में से 55 फीसदी को बेवजह बताया गया है। अप्रैल 2011 से 2012 के बीच किए गए अध्ययन के अनुसार चैरिटेबल और सरकारी अस्पतालों में गर्भाश्य को निकालने और शुरू को जन्म देने के समय 79 प्रतिशत अधिक व्यय किया गया। जिसका बोछ परिवार पर पड़ा। अस्पतालों में होने वाली सर्जरी पर पहली बार किए गए अध्ययन के बाद पब्लिक हेल्थ फाउंडेशने ने निजी अस्पतालों द्वारा बीमा के तहत ली जाने वाली धनराशि को नियंत्रित करने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना पर होने वाले खर्च को भी बढ़ाने की सिफारिश की है। शोध में शामिल फाउंडेशन के प्रमुख डॉ. रामानन लक्ष्मी नारायन ने बताया कि सर्जरी के बेवजह खर्च को कम किया जाता सकता है। निजी अस्पताल कुछ गैर जरूरी मदों का बोछ मरीजों पर डालते हैं, जिसे नहीं लिया जाना चाहिए। साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़ना चाहिए।
प्रमुख आंकड़े
वर्ष 2011 से 2012 के बीच वैश्विक स्तर पर 273500 महिलाआें की प्रजनन के समय मौत हुई, जिसमें से 99 प्रतिशत मौत एशियाई देशों में हुई और इसमें 70 प्रतिशत की जान सी सेक्शन या सर्जरी के कारण हुई। इसमें 45 प्रतिशत मामलों में हिस्टेक्टिमी की गई। जिसमें गर्भाशय को सर्जरी कर निकाल दिया जाता है।
कितने अस्पताल हुए शामिल
57 चैरिटेबल अस्पताल
200 निजी अस्पताल
400 जिला स्तरीय अस्पताल
655 क्षेत्रीय टैरिटोरियल अस्पताल
नोट- इस अस्पतालों से जनरल व इमरजेंसी में होने वाली सर्जरी पर होने वाले खर्च की जानकारी ली गई।