पक्षियों के तीन अन्य संक्रमण भी घातक
पीजनपॉक्स- पॉक्स वायरस की श्रेणी में आने वाले संक्रमण का असर लगभग सभी पक्षियों पर देखा जाता है। संक्रमित पशु के मुंह के लार और दुर्गंध से हवा में फैले वायरस सांस के जरिए मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। पीजनपाक्स का हालांकि वैक्सीन उपलब्ध है, लेकिन बीमारी होने के बाद इलाज किया जाता है, जबकि संक्रमण से बचाव के लिए पक्षियों को इंजेक्शन दिया जाना चाहिए।
सालमोनाइसेस- टीएलआरफोर नाम के एक विशेष तरह के रिसेप्सटर या वाहक को मुर्गो में सालमोनाइसेस की वजह माना जाता है। यह पैथोजेनिक संक्रमण है जिसका कारक टीएलआर प्रोटीन मानस शरीर की किडनी, लिवर और मस्तिष्क की कोशिकाओं में भी पाया जाता है। टीएलआरफोर संक्रमित पक्षी तीन से चार दिन के अंदर दम तोड़ देता है। जिसमें पक्षी के शरीर ढीला और मांसपेशियां स्थिल हो जाती हैं।
सीआरडी- क्रानिक रेस्पेरेटरी डिसीस या सांस संबंधी परेशानी पक्षियों में सबसे अधिक देखी जाती है। जिसकी वजह से 70 प्रतिशत पक्षियों की मौत होती है। सीआरी की एक अहम वजह प्रदूषण को भी माना जाता है। जबकि पक्षियों का सीआरडी आसानी से हवा के जरिए मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर सकता है।
नोट- इसके अलावा पक्षियों में कंजेक्टिवाइटिस, पेचिस और लकवा भी अहम हैं, लेकिन यह तीन संक्रमण मनुष्य के लिए खतरनाक नहीं है।
कबूतर की बीट भी निमोनाइटिस की कारक
पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में कबूतर की बीट को हाइपर सेंसिटिव निमोनाइटिस की वजह पाया गया। डॉ. राजकुमार ने बताया कि कबूतर की बीट से होने वाली एलर्जी पर अब तक विदेशों में ही अध्ययन किया गया था, लेकिन पिजन बीट के एंटीजन जांच में दो से तीन एलर्जी के मरीज को पटेल चेस्ट की ओपीडी में भी पॉजिटिव देखा गया। दिल्ली के प्रमुख चौराहों पर इकठ्ठा होने वाली बीट से होने वाली एलर्जी का असर आसपास 100 मीटर के दायरे से गुजरने वाले लोगो को प्रभावित कर सकती है। पिजन बीट से होने वाली एलर्जी का अध्ययन इंडियन जनर्ल ऑफ इम्यूनोलॉजी में भी प्रकाशित किया गया।