अभिषेक, नई दिल्ली
महिलाओं में दिल और इससे जुड़े रोगों की दर 10 प्रतिशत बढ़ी है और 40 साल से कम उम्र के लोगों में इसमें 28 प्रतिशत की दर से बढ़ौतरी हुई है। साल 2012 से 2016 के दौरान नैशनल हार्ट इंस्टीच्यूट में भर्ती हुए मरीज़ों पर की गई स्टडी में खुलासा हुआ है।
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कोरोनरी हार्ट डिजीज भारतीयों में तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के दूसरे हिस्सों की आबादी की तुलना में भारत में दिल के दौरे से मौत होने की संख्या 4 गुना ज़्यादा है। छोटी उम्र में इन रोगों की शुरूआत और महिलाओं में रोगी की बढ़ती हुई दर इससे भी ज़्यादा चिंता की बात है। विदेशों में लोगों ने जीवनशैली में सुधार करके इस चलन को कम किया है। लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों के बारे में फिलहाल ऐसा नहीं कहा जा सकता।
इस बारे में नैशनल हार्ट इंस्टीच्यूट के सीईओ एवं चीफ कार्डियक सर्जन, डॉक्टर ओपी यादव का कहना है कि इंस्टीच्यूट लोगों को दिल के रोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण सेवाएं उपलब्ध करवाने और बचाव से जुड़ी स्वास्थय जागरूकता फैलाने के लिए वचनबद्ध है। इसके लिए हम नियमित तौर पर कैंप लगाते रहते हैं। हमने कई एनजीओ के साथ साझेदारी की है और उत्तराखंड की सरकार के साथ मिल कर सफलतापूर्वक कार्यक्रम चला रहे हैं।
डॉक्टर यादव ने कहा कि हम अपनी 35वें स्थापना दिवस पर पिछले पांच सालों के अपने मरीज़ों पर आधारित अहम जानकारी जारी करने का फैसला किया है। इन आंकड़ों से पता चला है कि युवाओं और महिलाओं को आज दिल के रोग होने का ज़्यादा खतरा है। इस बदलते चलन का कारण अनहेल्दी खानपान, तंबाकू और अन्य उत्पादों के सेवन में वृद्धि, आलसी जीवनशैली और तनाव प्रमुख कारण हैं।
नैशनल हार्ट इंस्टीच्यूट के आंकड़े बताते हैं कि मासिकधर्म बंद होने से पहले के दौर में ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं जीवनशैली के कारणें की वजह से दिल के रोगों का इलाज करवाने आ रही हैं। 25 प्रतिशत महिलाओं की बाईपास सर्जरी की गई। इससे पहले माना जाता था कि महिलाओं में दिल के रोगों की संभावना मासिक धर्म बंद होने के बाद ही होती है। प्रचलित धारणा के उल्टा जागरूकता और बचाव के अभाव में पुरूषों की तुलना में महिलाओं की दिल के रोगों से मौत होने की संभावना ज़्यादा है।
इस बारे में डॉक्टर विनोद शर्मा ने कहा कि सच्चाई यह है कि नैशनल हार्ट इंस्टीच्यूट में भर्ती होने वाली महिलाओं की संख्या पिछले 5 सालों में 10 प्रतिशत बढ़ी है। मासिक धर्म बंद होने से पहले तक महिलाओं में एस्ट्रोजन हार्मोन उनके दिल की सुरक्षा करते हैं। चूंकि 50-55 की उम्र के बाद इन हार्मोन का स्तर कम होने लगता है तो महिलाएं दिल के रोगों के मामले में पुरूषों के बराबर आने लगती हैं। लेकिन आज यह चलन बदल रहा है और मासिक धर्म बंद होने से पहले महिलाओं में दिल के रोग पाए जाने लगे हैं। इस बढ़ते चलन की वजह धुम्रपान, वज़न कम करने के ख़तरनाक तरीके, अस्वस्थ खानपान, अत्यधिक तनाव और दिल के रोगों की जांच और इलाज के प्रति ध्यान ना देना है।