नई दिल्ली,
सीसा यानि लेड की पर्यावरण में बढ़ती मात्रा अल्जाइमर का खतरा बढ़ा रही है, लेड हमारी आसपास की कई चीजों में पाया जाता है। प्रदूषण बढ़ने पर हवा में इसकी मात्रा अधिक हो जाती है, वार्निंश पेंट या फिर खराब प्लास्टिक से बनने वाले खिलौनों में भी लेड देखा जाता है। लेड को न्यूरोडिजेनेरेटिव डिसीस, अल्जाइमर के जिम्मेदार माना गया है। यह भी देखा गया कि प्रदूषण के कारण हवा में बढ़े जहरीले तत्वों का असर कई तरह के पैथोफिजियोलॉजिकल और सेंट्रल नर्व सिस्टम में गड़बड़ी पैदा करता है। लंबे समय तक लेड जैसे जहरीले तत्वों के संपर्क में रहने से उम्र बढ़ने पर याद्दाश्यत जल्द ही कमजोर होने लगती है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय पोषण संस्थान द्वारा डॉ. सुभाषा चल्ला के नेतृत्व में विषय पर शोध किया गया। इनविट्रो अध्ययन के तहत लेड और बीटा मॉलीक्यूल्स मस्तिष्क की न्यूरोन्स पर सर पर अध्ययन किया गया। अल्जाइमर बीमारी में एक विशेष तरह की पैथाफिजियोलॉजी देखी जाती है, जिसमें मस्तिष्क के एक विशेष हिस्से पर बीटा एम्लायड एकठ्ठा हो जाता है, इसी के साथ ही उम्र बढ़ने के कारण जब मस्तिष्क की नसें सिकुड़ने लगती हैं तो मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है, ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने से न्यूरोन्स सेल्स क्षतिग्रस्त होने लगती हैं, इस लिहाज से लेड और बीटा सेल्स के मॉलीक्यूल्स के बदलाव को बीमारी के प्रारंभिक चरण के लिए जिम्मेदार माना गया। बीटा के मस्तिष्क में जमाव के लैबोरेटरी के अध्ययन के परिणाम कहते हैं कि लेड एक्सपोजर से प्रो- एपोप्टोटिक प्रोटीन का स्त्राव अधिक होने लगा, इसी प्रोटीन की वजह से मस्तिष्क में न्यूरोडिजेनेशन होने लगता है। यही लेड गर्भवती महिला के पेट में पल रहे बच्चे के लिए भी हानिकारक है, जो बच्चे की बौद्धिक क्षमता के साथ ही बाद में अल्जाइमर के खतरे को बढ़ा देता है। वहीं दूसरी तरफ अध्ययन में यह भी देखा गया कि थेरेपेटिक शोध के तहत खाने में एंटी ऑक्सीटेंड युक्त आहार लेने से बीमारी से बचा जा सकता है, इसमें हरी सब्जियां, सेब, चेरी आदि को शामिल किया गया, जो मस्तिष्क में लेड को जमा ही नहीं होने देतीं।