नई दिल्ली: प्रदूषण की वजह से हाल बेहाल है, दिल्ली में रह रहे लोगों को एक एक सांस के लिए सोचना पड़ रहा है। एम्स के डायरेक्टर और जाने माने लंग् स्पेशलिस्ट डॉक्टर रणदीप गुलेरिया का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण की वजह से मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति बन गई है। उन्होंने कहा कि एक अनुमान है कि दिल्ली एनसीआर में हर साल प्रदूषण की वजह से 30 हजार लोग मरते हैं। यही नहीं, वो कहते हैं कि जब जब प्रदूषण का स्तर बढ़ता है एम्स में मरीजों की संख्या भी बढ़ती है। पिछले साल के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कम से कम 20 पर्सेंट मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।
डॉक्टर गुलेरिया ने कहा कि हमारे पास ऐसी कोई जांच की सुविधा नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि प्रदूषण की वजह से बीमारी या मौत हो रही है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार डेंगू या चिकनगुनिया की बीमारी का पता लगाने के लिए खून की जांच की जा सकती है, वैसा इसके साथ नहीं है। लेकिन, जब प्रदूषण के कण सांस के जरिए लंग्स में पहुंचता है तो सांस की नली में सूजन पैदा होने लगती है, लंग्स सिकुड़ जाता है, वह अपना पूरा काम नहीं कर पाता है। यह एक प्रकार का साइलेंट किलर है, जो डायरेक्टर तो कनेक्ट नहीं करता है, लेकिन जब जब प्रदूषण बढ़ता है तो लोगों की परेशानी बढ़ती है, हार्ट, लंग्स के मरीजों का दर्द बढ़ जाता है। उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ता है और इलाज के दौरान मौत हो जाती है। भले ही यह मौत हार्ट की वजह से हुई हो लेकिन कहीं न कहीं इसका कारण प्रदूषण भी है।
डॉक्टर ने कहा कि इसका लांग टर्म इफेक्ट होता है। कई साल तक अगर इसी प्रकार के प्रदूषण में कोई बच्चा रहेगा तो उसके लंग्स का ग्रोथ कम होगा, उसकी क्षमता कम होगी। 20 साल बाद जब वह बच्चा युवा होगा तो उसे सांस की तकलीफ ज्यादा होगी, उसे लंग्स में परेशानी होगी। अगर प्रदूषण के कण खून में पहुंच जाए तो इसकी वजह से हार्ट की नली सिकुड़ जाती है और वह पूरा काम नहीं कर पाता है, उसे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।